________________ और पुद्गल-परिणाम को प्राप्त कर फल देता है-पोग्गलं पप्प, पोगलपरिणाम पप्प। इनके बिना कर्म फल नहीं दे सकता। आज का शरीरशास्त्री (फिजियोलॉजिस्ट) कहता है कि शरीर का छोटा-बड़ा होना, लम्बा-ठिगना होना-यह सारा पीयूष ग्रन्थि के स्राव पर निर्भर रहता है। यह स्राव पूरी शरीर-रचना पर प्रभाव डालता है। यह है पुद्गल-परिणाम है। कर्मशास्त्री उस भाषा में कहेगा कि शरीर की लम्बाई-चौड़ाई, सुन्दरता-असन्दुरता-ये सब कर्म से जुड़े हुए हैं। जब पुद्गल का परिणमन होता है, तब कर्म फल देता है। यदि पुद्गल का परिणमन नहीं होता तो कर्म अपना फल नहीं दे सकता। यह सम्बन्ध उपादान तक पहुंच जाता है। उपादान हैं-पुद्गल और पुद्गल का परिणमन। रात को दस बजते ही आंखों में नींद घुलने लग जाती है। रात्रि का यह समय नींद का निमित्त बनता है। यदि यह निमित्त नहीं मिलता तो नींद नहीं आती। निमित्त बदल जाता है तो नींद भी बदल जाती है। इसमें भी कर्म जुड़ जाता है। वही कर्म प्रभावी होता है, जिसे निमित्त मिल जाता है, पुद्गल और पुद्गल का परिणमन प्राप्त हो जाता है। ध्यान करने वाले व्यक्ति को संतुलन स्थापित करना होता है। ध्यान-काल में शारीरिक कष्ट होता है, पर यह कष्ट अच्छे परिणाम लाता है। आदमी इन शारीरिक कष्टों में घबराकर ध्यान-साधना को छोड़ देता है। यह उसकी कमजोरी है। बिलौना किया, मक्खन निकाला। अब उसको तपाकर घी प्राप्त करना है। तो क्या मक्खन को सीधा अग्नि पर रखने से घी हो जाएगा? नहीं, सीधा अग्नि पर रखने से आग भभकेगी, मक्खन ही नष्ट हो जाएगा। यदि मक्खन को एक बर्तन में रखकर आग पर तपाते हैं तो अग्नि भी रहती है और घी भी मिल जाता है। प्रश्न होता है, बेचारे बर्तन को क्यों तपाते हैं? बर्तन का क्या लेना-देना है मक्खन से? घी बनना है मक्खन को, बर्तन को घी नहीं बनना है। पर मक्खन को बर्तन में रखे बिना घी मिलता नहीं। हम अच्छे विचार और अच्छे भाव लाना चाहते हैं, पर जब तक यह बर्तन-शरीर अच्छा नहीं बनेगा, तब तक वह अच्छे विचारों और अच्छे भावों का संवाहक या उत्पादक नहीं हो सकेगा। चूल्हे पर तो शरीर को ही रखना होता है। मन तो करे कोई, भोगे कोई 236