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________________ गर्मी का मौसम है। आदमी धूप में बैठा है। उसे कष्ट का अनुभव होता है। उसे कष्ट की संवेदना हुई और वह पेड़ की सघन छांह में जाकर बैठ गया। वहां सुख का संवेदन प्रारम्भ हो गया। कर्म बदल गया, कर्म का विपाक बदल गया। प्यास लगी, भूख लगी। असुखवेदनीय का उदय हो गया। पानी पीया, प्यास मिट गई। भोजन किया, भूख मिट गई। सुखवेदनीय का उदय हो गया। ___दो विरोधी कर्म-प्रकृतियां निरन्तर चलती रहती हैं। निमित्तों के अनुसार कभी कोई प्रकृति प्रकट हो जाती है और कभी कोई प्रकृति प्रकट हो जाती है। एक आदमी ने कोई अच्छा काम किया। उससे हजार आदमियों को सुख मिला। इस स्थिति में उपादान की दृष्टि से हम नहीं कह सकते कि वह आदमी सुख देने वाला है, किन्तु निमित्त की दृष्टि से कहा जा सकता है कि वह सुख देने वाला है। एक आदमी ने अणुबम का प्रयोग किया। लाख आदमी एक साथ मारे गए। उपादान की दृष्टि से नहीं कहा जा सकता कि वह मारने वाला है, किन्तु निमित्त की दृष्टि से कहा जा सकता है, कि वह मारने वाला है। यदि मनुष्य मरणधर्मा नहीं होता, उसमें मरने की क्षमता नहीं होती तो हजार अणुबमों का विस्फोट करने पर भी आदमी कभी नहीं मरता। आदमी तभी तो मरता है कि उसमें मरने की अर्हता है, योग्यता है। मरने का उपादान आदमी है, बस निमित्त मिला और वह मर गया। निमित्त का उतना ही काम है कि जो उपादान है, उसे व्यक्त कर देना। जो उपादान निष्क्रिय है, उसे सक्रिय कर देना। जो अप्रभावी है, उसे प्रभावी बना देना। हमारा सारा व्यवहार निमित्तों के आधार पर चलता है, इसीलिए आदमी मानता है कि अमुक ने उसे सुखी बना दिया, अमुक ने उसे दुःखी बना डाला। वह कभी किसी की प्रशंसा करता है और कभी किसी की निन्दा करता है। यह सोचकर प्रशंसा करता है कि इसने मेरा भला किया है और यह सोचकर निन्दा करता है कि इसने मेरा अहित किया है। दोनों सही हैं। दोनों बातें चलती हैं। निमित्त के बिना हमारा काम नहीं चलता। किन्तु निमित्त पर अटक जाना सचाई को वहीं समाप्त कर देना है। उपादान को समझना भी बहुत जरूरी है। करे कोई, भोगे कोई 235
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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