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________________ लिए, न जाने कितने लोग, किस प्रकार की माया का आचरण कर लेते हैं। माया जागती है। लोभ भी जागता है। धनार्जन के लिए कितने लोग किस प्रकार के लोभ का आचरण करते हैं। आहार की वृत्ति के कारण क्रोध आदि चार वृत्तियों की अभिव्यक्ति होती है। भय के कारण भी चारों वृत्तियां पनपती हैं। इसी प्रकार मैथुन और परिग्रह की वृत्ति के कारण भी ये चारों वृत्तियां पनपती हैं, व्यक्त होती हैं। परिग्रह से क्रोध की वृत्ति जागती है। अहंकार तो उसके साथ है ही। जिसके पास अधिक संग्रह है, परिग्रह है, वह निश्चित ही अहंकारी बना रहेगा। माया की वृत्ति परिग्रह के कारण जागती है। लोभ परिग्रह से जुड़ा हुआ है। प्रथम वर्ग की चित्तवृत्तियों में दूसरे वर्ग की चित्तवृत्तियों को जगाने की क्षमता है, उन्हें उभारने की क्षमता है। __. तीसरा वर्ग है-ओघसंज्ञा और लोकसंज्ञा। ओघसंज्ञा का अर्थ है सामुदायिकता की संज्ञा। मनुष्य में समूह की भावना होती है, समूह की चेतना होती है, समूह में रहने की मनोवृत्ति होती है। मानसशास्त्री मेक्समूलर ने मनुष्य की एक वृत्ति का उल्लेख किया है। वह है-यूथाचारिता। इसका अर्थ है समूह में रहने की मनोवृत्ति। इससे ओघसंज्ञा की तुलना की जा सकती है। यह है ओघ चेतना, समष्टि की चेतना, सामुदायिक चेतना। पशुओं में भी यह चेतना है, मनुष्य में भी यह चेतना है। इसीलिए गांव बसा, नगर बसा, समाज बना। समाज में रहने की मनोवृत्ति और समाज का अनुकरण करने की मनोवृत्ति को सामुदायिक चेतना कहते हैं। हम कई बार लोगों को ऐसा कहते हुए सुनते हैं कि 'जो सबको होगा वह हमें भी हो जाएगा। क्या अन्तर पड़ेगा? जब सब ऐसा काम करते हैं, तो मैं क्यों नहीं करूं? जो परिणाम सबको होगा, वह मुझे भी हो जायेगा। मैं अकेला इससे वंचित क्यों रहूं?' यह सामुदायिक चेतना की बात है। यह ओघसंज्ञा है। इसे यूथाचारिता कहा जा सकता है। ___ एक है लोकसंज्ञा। यह वैयक्तिक चेतना है। प्रत्येक प्राणी में कुछ विशिष्टताएं होती हैं। इन विशिष्टताओं के कारण कुछ आचरण होते आचरण के स्रोत 11
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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