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________________ न हो। किन्तु थोड़ा-सा अन्तर है। मनुष्य में ये वृत्तियां जितनी विकसित होती हैं उतनी वनस्पति या छोटे प्राणियों में विकसित नहीं होतीं। किन्तु इनका अस्तित्व अवश्य है। वनस्पति में क्रोध की संज्ञा होती है, मान की संज्ञा होती है, माया की संज्ञा होती है और लोभ की संज्ञा होती है। वनस्पति में चारों संज्ञाएं होती हैं। किन्तु वे मनुष्य में जितनी स्पष्ट होती हैं, वनस्पति में उतनी स्पष्ट नहीं होतीं। यह दूसरा वर्ग है चार वृत्तियों का। प्रथम वर्ग की चार वृत्तियों के कारण दूसरे वर्ग की ये चार वृत्तियां विकसित होती हैं, उभरती हैं। क्रोध पैदा होता है रोटी के कारण। रोटी और पैसे के सवाल पर लड़ाइयां होती हैं, झगड़े होते हैं। आहार क्रोध का कारण बन जाता है। कुत्ते को रोटी डाली। दूसरे कुत्ते आ गये। आपस में झगड़ने लगे। रोटी गुस्से का, झगड़े का कारण बन गयी। एक आदमी को अच्छी आजीविका प्राप्त है। वह अच्छे स्थान पर है। दूसरा उस स्थान पर आने का प्रयत्न करता है, पहले वाले की नौकरी छुड़वाने का प्रयास करता है। क्रोध प्रारंभ होता है। मनमुटाव होता। कलह होने लगती है। यह आजीविका या आहार के कारण होता है। एक व्यक्ति की आवश्यकताएं अच्छे ढंग से पूरी होती हैं। दूसरा उसे देखता है। उसकी आवश्यकताएं पूरी नहीं होतीं। पहले व्यक्ति के मन में अहंभाव आ जाता है। अहंकार सदा. दूसरे को देखकर ही आता है। अपने से हीन व्यक्ति को देखकर दूसरे को अहंकार करने का अवसर मिलता है। यदि सामने हीनता न हो तो अहंकार को प्रकट होने का अवसर ही नहीं मिल पाता। कर्म के उदय से भी अहंकार का भाव अचानक जाग जाता है। यह आकस्मिक होता है। उन परमाणुओं का वेदन करना होता है। परन्तु सामान्यतः अहंकार जागता है हीनता को सामने देखकर। दूसरे की हीनता पर अहंकार जागता है। एक आदमी को झाडू लगाना है, दूसरे को नहीं। अहंकार जाग जायेगा। यह मेरे सामने झाडू लगाने वाला है-यह अहंकार का निमित्त बनता है। आजीविका की वृत्ति पर भी अहंकार जागता है। आजीविका माया को भी जगाती है। रोटी और आजीविका के 10 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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