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________________ का उदय समाप्त हो गया? रात को सोने का समय है। उस समय नींद आने लगती है, पहले नहीं आती। तो क्या दर्शनावरणीय कर्म का उदय समाप्त हो गया? कर्म विद्यमान् है, चालू है, पर विपाक देता है द्रव्य के साथ, काल और क्षेत्र के साथ। एक क्षेत्र में नींद बहुत आती है और दूसरे क्षेत्र में नींद नहीं आती। एक काल में नींद बहुत सताती है और दूसरे काल में नींद गायब हो जाती है। क्षेत्र और काल-दोनों निमित्त बनते हैं कर्म के विपाक में। बेचारे नारकीय जीवों को नींद कभी आती ही नहीं। कहां से आएगी? वे इतनी सघन पीड़ा भोगते हैं कि नींद हराम हो जाती है। तो क्या यह मान लें कि नारकीय जीवों में दर्शनावरणीय कर्म समाप्त हो गया? नहीं, उनमें दर्शनावरणीय कर्म का अस्तित्व है, पर क्षेत्र या वेदना का ऐसा प्रभाव है कि नींद आती ही नहीं। प्रत्येक कर्म द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, जन्म आदि-आदि परिस्थितियों के साथ अपना विपाक देता है। ये सारी कर्म की सीमाएं हैं। कर्म सब कुछ नहीं करता। जब व्यक्ति जागरूक होता है तब किया हुआ कर्म भी टूटता-सा लगता है। कर्म में कितना परिवर्तन होता है, इसको समझना चाहिए। भगवान् महावीर ने कर्म का जो दर्शन दिया, उसे सही नहीं समझा गया, कम समझा गया। अन्यथा कर्मवाद के विषय में इतनी गलत मान्यताएं नहीं होती। आज भारतीय मानस में कर्मवाद और भाग्यवाद की इतनी भ्रान्तिपूर्ण मान्यताएं घर कर गई हैं कि आदमी उन मान्यताओं के कारण बीमारी भी भुगतता है, कठिनाइयां भी भुगतता है और गरीबी भी भुगतता है। गरीब आदमी यही सोचता है कि भाग्य में ऐसा ही लिखा है, अतः ऐसे ही जीना है। बीमार आदमी भी यही सोचता है कि भाग्य में बीमारी का लेख लिखा हुआ है, अतः रुग्णावस्था में ही जीना है। वह हर कार्य में कर्म का बहाना लेता है और दुःख भोगता जाता है। आज. उसकी आदत ही बन गई है कि वह प्रत्येक कार्य में बहाना ढूंढ़ता है। - एक न्यायाधीश के सामने एक मामला आया। लड़ने वाले थे पति और पत्नी। पली ने शिकायत की कि मेरे पति ने मेरा हाथ तोड़ डाला। जज ने पति से पूछा-'क्या तुमने हाथ तोड़ा है?' उसने कहा-'हां! मैं ____ अतीत से मुक्त वर्तमान 163
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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