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________________ शराब पीता हूं। गुस्सा आ गया और मैंने पत्नी का हाथ तोड़ डाला।' जज ने सोचा-घरेलू मामला है। पति को समझाया, मारपीट न करने की बात कही और केस समाप्त कर दिया। कुछ दिन बीते। उसी जज के समक्ष वे दोनों पति-पत्नी पुनः उपस्थित हुए। पत्नी ने शिकायत के स्वर में कहा-'इन्होंने मेरा दूसरा हाथ भी तोड़ डाला है।' जज ने पति से पूछा, उसने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा- 'जज महोदय! मुझे शराब पीने की आदत है। एक दिन मैं शराब पीकर घर आया। मुझे देखते ही पत्नी बोली-शराबी आ गया। शराब की भांति मैं उस गाली को भी पी गया। इतने में ही पत्नी फिर बोली-न्यायाधीश भी निरा मूर्ख है, आज ये कारावास में होते. तो मेरा हाथ नहीं टूटता। जब पत्नी ने यह कहा तब मैं अपने आपे से बाहर हो गया। मैंने स्वयं का अपमान तो धैर्यपूर्वक सह लिया पर न्यायाधीश का अपमान नहीं सह सका और मैंने इसका हाथ तोड़ डाला। यह मैंने न्यायाधीश के सम्मान की रक्षा के लिए किया. था। मैं अपराधी नहीं ___आदमी को बहाना चाहिए। बहाने के आधार पर वह अपनी कमजोरियां छिपाता है और इस प्रक्रिया से अनेक समस्याएं खड़ी होती हैं। यदि आदमी साफ होता, बहानेबाजी से मुक्त होता तो समस्याएं इतनी नहीं होती। कर्म और भाग्य का बहाना भी बड़ा बहाना बन गया है। इसके सहारे अनेक समस्याएं उभर रही हैं। इन समस्याओं का परिणाम आदमी को स्वयं भुगतना पड़ रहा है। वह परिणामों को भोगता जा रहा है। जब दृष्टिकोण, मान्यताएं और धारणाएं गलत होती हैं तब उनके परिणामों से उबारने वाला कोई नहीं होता। 'सब कुछ कर्म ही करता है'-यह अत्यन्त भ्रान्त धारणा है। आदमी ने सापेक्षता को विस्मृत कर दिया। सब कुछ कर्म से नहीं होता। काल, स्वभाव, नियति, पुराकृत (हमारा किया हुआ) और पुरुषार्थ-ये पांच तत्त्व हैं। इन्हें समवाय कहा जाता है। ये पांचों सापेक्ष हैं। यदि किसी एक को प्रधानता देंगे तो समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। काल प्रकृति 164 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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