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________________ अतीत से मुक्त वर्तमान हम चर्चा करते हैं स्वतंत्रता और परतंत्रता की। कौन स्वतंत्र है और कौन परतंत्र? कौन उत्तरदायी है? इन प्रश्नों का उत्तर एकान्त की भाषा में नहीं दिया जा सकता। हम नहीं कह सकते कि हम पूर्ण स्वतंत्र हैं। हम यह भी नहीं कह सकते कि हम पूर्ण परतंत्र हैं। दोनों सापेक्ष हैं। हम स्वतंत्र भी हैं और परतंत्र भी हैं। जहां-जहां निरपेक्ष प्रतिपादन होता है वहां समस्या का समाधान नहीं होता, सत्य उपलब्ध नहीं होता, सत्य के नाम पर असत्य उपलब्ध होता है। . महान् वैज्ञानिक आइंस्टीन ने सापेक्षवाद का प्रतिपादन किया और उसका आधार माना प्रकाश की गति को। उन्होंने प्रकाश की गति को स्टैंडर्ड मानकर अनेक प्रयोग किये। प्रकाश की गति है एक सेकंड में एक लाख छियासी हजार मील की। इस आधार पर जो निर्णय लिये गए वे सारे सापेक्ष निर्णय हैं, निरपेक्ष नहीं। प्रकाश की गति सापेक्ष निर्णय है। प्रकाश की गति और तीव्र होती तो सारे निर्णय बदल जाते। काल छोटा भी हो जाता है और बड़ा भी हो जाता है। काल सिकुड़ जाता है सापेक्षता से। काल पीछे सरकता है और छलांग भी भरता है। काल का प्रतिक्रमण भी होता है और अतिक्रमण भी होता है। यह सारा सापेक्षता के आधार पर होता है। इसलिए सारे निर्णय सापेक्ष होते हैं। जहां सापेक्षता की विस्मृति होती है वहां तनाव पैदा होता है। ... काल, स्वभाव, नियति, कर्म-ये सारे तत्त्व स्वतंत्रता को सीमित करते हैं, परतंत्रता को बढ़ाते हैं। आदमी काल से, स्वभाव से, नियति से और कर्म से बंधा हुआ है। बंधन के कारण वह पूर्ण स्वतंत्र नहीं . अतीत से .मुक्त वर्तमान 161
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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