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________________ पाठ-सम्पादन एवं अनुवाद चंदन का क्या दोष? इक्षु के अग्रभाग में उत्पन्न नलस्तम्ब नामक तृण यदि तीव्र खारेपन को नहीं छोड़ता तो इसमें इक्षु का क्या दोष? 95. मिगमदगंधे लसणं, न चयई कइया वि अप्पणो गंधं। रविकरपसरंतेहिं, अंधत्तं होति उल्लूणं'॥ कस्तूरी के मद में रखने पर भी लहसुन अपनी गंध नहीं छोड़ता। सूर्य की किरणों का प्रसार होने पर भी उल्लू अंधेपन को नहीं छोड़ते। 96. एगुदरसमुप्पण्णा, सहजाता य सहवड्डितसरीरा। __न वि होंति य समसीला, कक्कंधु-कंटसमतुल्ला॥ एक उदर से उत्पन्न, साथ में जन्मे हुए और साथ में पलेपुसे भाई भी बेर के कांटे के समान एक जैसे शील-आचरण वाले नहीं होते। __97. एवं परोवयारो, साहु असाहूण संगमारूढो। सेवासंगादिफलं, कुपत्तपत्ताणुसारेणं॥ इस प्रकार साधु असाधु की संगत में आरूढ़ होकर भी परोपकारी होता है। किन्तु सेवा और संगति का फल तो कुपात्र या सुपात्र के अनुरूप ही मिलता है। 98. किं कायमणिनिउत्तो, वेरुलिओ किं हवई कायमणी। कसवट्टएहि घसितं, किं कणगं होति मसिवण्णं॥ क्या काचमणि के साथ रखा हुआ वैडूर्यमणि काचमणि के रूप में परिवर्तित होता है? क्या कसौटी पर घिसा हुआ सोना श्याम वर्ण वाला होता है? - 99. लब्भति विमाणवासो, लब्भति लीला य वंछिता' लच्छी। . इह हारितं न लब्भति, दुल्लभरयणुव्व सम्मत्तं॥ प्राणी विमानवास (देवलोक) को प्राप्त कर सकता है, लीला 1. चायई (अ, द, हे)। और अभावुक। वैडूर्यमणि अभावुक 2. उलुआणं (अ, द, हे)। होती है, वैसे ही सज्जन पुरुष 3. हवइ (ब), हवेइ (द)। अभावुक होते हैं / वे दुर्जनों की संगति 4. आवश्यक नियुक्ति (728) के अनुसार से प्रभावित नहीं होते। पदार्थ दो प्रकार के होते हैं- भावुक 5. वत्तिया (अ, द, हे)।
SR No.004272
Book TitleAgam Athuttari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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