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________________ | प्रस्तावना | आचार्यप्रवर श्री सुभद्र मुनि जी प्रो. डॉ. दामोदर शास्त्री, भारतीय संस्कृति की प्रमुखतः दो समानान्तर धाराएं हैं- वैदिक व श्रमण। वर्तमान जैन परम्परा 'श्रमण परम्परा' का प्रतिनिधित्व करती है। दोनों परम्पराओं में कुछ समानताएं हैं, जैसे- दोनों ही परम्पराएं यह मानती हैं कि मानव-जीवन के चार पुरुषार्थ होते हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। अर्थात् दोनों ही यह मानती हैं कि मानव जीवन की सार्थकता इन्हीं पुरुषार्थों की सिद्धि में निहित है। किन्तु वह सिद्धि किस प्रकार प्राप्त हो, कैसी हमारी जीवन-चर्या हो, पुरुषार्थों की सिद्धि की विधि क्या हो, और लौकिक व लोकोत्तर कल्याण किस रीति से प्राप्त किया जा सके -इस सम्बन्ध में दोनों परम्पराएं पृथक्-पृथक् 'प्रमाणभूत शास्त्र' मानती हैं। इस प्रकार, वैदिक व श्रमण परम्परा का प्रमुख अन्तर यह है कि वैदिक परम्परा 'वेद' को 'प्रमाणभूत शास्त्र' मानती है और जैन परम्परा जैन आगमों को, जिनमें 'जिनवाणी' (तीर्थंकर-वाणी) सार रूप में निहित है। अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर की वाणी को उनके गणधरों- इन्द्रभूति गौतम व आर्य सुधर्मा आदि ने शब्दात्मक रूप दिया, जिसके फलस्वरूप वर्तमान (द्वादशांगी) जैन आगम' अस्तित्व में आए। परवर्ती विशिष्ट श्रुतज्ञानी आचार्यों ने भी 'शास्त्रों' की रचना की, जिन्हें (अंगबाह्य, उपांग आदि) आगमों के रूप में मान्यता मिली। जैन आगमों को तात्त्विक ज्ञान-विज्ञानादि का विशाल अनुपम भण्डार माना जाता है। यद्यपि कालक्रम से, काल-दोष से इनका अधिकांश भाग विच्छिन्न-विलुप्त हो गया, तथापि आज जो उपलब्ध श्वेताम्बर आगम साहित्य है, उसकी सुरक्षा का श्रेय आचार्य देवर्द्धिगणी (ई. 5 वीं शती) को जाता है जिन्होंने तत्कालीन अवशिष्ट ज्ञान-भण्डार को लिपिबद्ध व सुव्यवस्थित किया। इन आगमों को परवर्ती विशिष्ट आचार्यों ने चूर्णि, नियुक्ति, भाष्य व टीका आदि से संवलित कर जिनवाणी के हार्द को अधिक स्पष्ट करने का सफल प्रयास किया। इन आगमों की भावना के अनुकूल अनेक मौलिक ग्रन्थों की भी रचना हुई, जिससे जैन-धर्म व दर्शन से सम्बन्धित साहित्य-भण्डार की श्रीवृद्धि होती रही है। जिनवाणी पर आधारित जो मौलिक ग्रन्थ रचित हुए, उनमें 'विशेषावश्यक' ग्रन्थ को महनीय स्थान प्राप्त है। CRBRBRB0BARB0BRB0R [17] RBOORBORB0BROOT
SR No.004270
Book TitleVisheshavashyak Bhashya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Damodar Shastri
PublisherMuni Mayaram Samodhi Prakashan
Publication Year2009
Total Pages520
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size11 MB
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