________________ महापुरिसदसणम्मि रण्णुंदुरस्स कहा-५८ सेणिअनरिंदो मम वंदणाय समागच्छंतो तत्थ संपत्तो, तओ दइव्वजोगाओ स दद्दुरो मग्गे सेणिअनिवतुरंगखुरेण खुण्णो तत्थ च्चिय सुहज्झाणेण मरिऊण सोहम्मदेवलोगे दडुरंकनामो देवो समुववण्णो / उपत्तिसमयाणंतरं ओहिनाणेण नियपुव्वभववुत्तंतं नच्चा मं एत्थ समवसरिअं विण्णाय सज्जो समागंतूण वंदिऊण नियरिद्धिं दंसिऊण य नियट्ठाणं गओ, अणेण सुहभावणाए एरिसी रिद्धी संपत्ता, सो य महाविदेहे सिद्धिं पाविस्सइ / उवएसोनंदस्स मणियारस्स, वयविराहणाफलं / सोचा दुजणसंसग्गं, दूरओ परिवजए / / 8 / / वयविराहणाए नंदमणियारस्स सत्तावण्णइमी कहा समत्ता / / 57 / / -अप्पपबोहाओ (आत्मप्रबोधात् ) अट्ठावनइमी महापुरिसदसणम्मि रण्णुंदुरस्स कहा - - - - - - महापुरिसमाहप्पं, अप्पमेजं सिया जओ / धम्मजिणीसरेणेह, तारिओ मूसगो भवा / / 1 / / एगया भगवया गणहरदेवेण धम्मजिणवरो पुच्छिओ-भगवं! इमीए महईए महालयाए परिसाए पढमं को सिद्धिवसहिं पाविहिइ ? त्ति / भगवया भणियं-देवाणुप्पिया ! / एसो जो तुह पासेण, मूसगो एइ धूसरच्छाओ / संभरियपुव्वजम्मो, संविग्गो णिब्भरपयारो / / 2 / / मह दंसणपरितुट्ठो, आणंदभरंतर्बाहनयणिल्लो / तड्डवियकण्णजुयलो, रोमंचुचइय-सव्वंगो / / 3 / / अम्हाणं सव्वाण वि, पढम चिय एस पावरयमुक्को / पाविहिइ सिद्धिवसहिं, अक्खयसोक्खं अणाबाहं / / 4 / / 1. बाष्पः-अश्रु / / 2. ततः-विस्तीर्णकर्णयुगलः / /