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________________ पराववायविहाणम्मि लोइयतावसीए कहा-९० 97 एत्थंतरालम्मि तावसीए भाया समागओ, तावसीए सम्मं भुंजाविओ सा य कज्जत्थं बाहिरं गया / इओ य अइहिणा' तेण भायरेण तं भायणं उग्घाडियं, कीडगेहिं भरियं भायणं पासित्ता बहिणीए पुरओ पुटुं वहिणि ! इमं भायणं कीडगेहिं किं भरियं ? / सा वयासी-जावंता पुरिसा एयाए तेसाए घरम्मि भोगाय समागच्छिरे, ताणं संशाणाणणाष्टुं ककरा मए एयामि भायणामि खिविया सांत (तीए भाया वएइ-तुमंतु इमाए इस विहमाणां निद वयंती एवं कासी / तेण तुमए वेसापावं गहियं, अओ भायणम्मि पक्खित्ता कक्करा वि पावुदएण कीडगा संजाया / पाविणो पावगणणा न कीरइ / जइ परस्स पावगणणा किज्जइ, तइया तस्स पावं लग्गइ / वुत्तं च अतिही चाऽववाई य, दो एए मम बंधवा / अववाई हरे पावं, अतिही सग्गसंकमो / / 2 / / 1. अतिथिना / /
SR No.004269
Book TitlePaiavinnankaha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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