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________________ पहुभत्तिपहावम्मि निद्धणचंदवणियस्स कहा-८२ एयाए चउद्दसीए सत्तुंजयमहातित्थम्मि सिरिसंतिजिणस्स दिट्ठीए रसकूविगं उग्घाडिस्सं, संझं जाव तइया तव इच्छा सिया तइया तत्थ आगंतव्वं, रसो गहियव्वो, सो रसो एगगदीयाणपमाणो सट्ठिगदीयाण-गतउणज्झे खिविज्जइ, तया सव्वं सुवण्णं सिया / तओ चंदो तत्थ गंतूणं उसहतित्थयरं भत्तीए समञ्चिऊणं थुणिऊणं च तओ . सिरि-संतिजिणं पणमित्ता रसकूविगाओ तुंबयत्तयं गिण्हित्था / तओ गेहे समेञ्च सुवण्णं किच्चा किच्चा इड्डिवंतो जाओ / सत्तखेत्तीए धणं वइऊणं पज्जंते चारित्तं घेत्तूणं सो चंदो सत्तट्ठभवमझे सिद्धिं गच्छिहिइ / उवएसो णायं चंदवणियस्सेह, पहुभत्तिभरत्रियं / / सोचा सम्मं जिणे भत्ति-कारगा होह सव्वया / / 2 / / पहुभत्तिपहावम्मि निद्धणचंदवणियस्स बासीइयमी कहा समत्ता / / 82 / / -पबंधपंचसईए
SR No.004269
Book TitlePaiavinnankaha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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