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________________ पाइअविनाणकहा-१ सो जिणदत्तो लहुबंधुणो मग्गणत्थं अग्गे चलिओ / कत्थवि सुद्धिं अपावंतो सत्तमदिणे जंमि नयरे सो जिणरक्खिओ किवणस्स घरे थिओ अत्थि, तस्स नयरस्स बाहिरं आगओ / तया तन्नयराहिवो अपुत्तो अकाले मच्चु पत्तो / तओ पहाणेहिं रज्जजोग्गपुरिसमग्गणाय छत्तचामराइविहूसाजुओ गओ अलंकिओ / सो गयंदो नयरे भमंतो कमेण नयराओ बाहिं जत्थ सो जिणदत्तो तरुस्स हिट्ठम्मि सुत्तो अत्थि, तत्थ समागओ / सो गयंदो तं जिणदत्तं कलसेण अभिसिंचेइ, सयं चिय छत्तं धरिज्जइ, चामरा सयमेव वीइज्जंति / गइंदो करेण तं गहिऊण कुंभथलंमि ठवेइ / मंतिमुहा पउरजणा अहिनवं नरिंदं हरिसेणं नमंति / समहूसवं नयरं पवेसंति / रज्जसहाए रज्जाभिसेएण अहिसिंचंति / एवं रज्जदाइओसहिप्पहावेण स तंमि नयरे महाराया जाओ / नियबंधुगवेसणत्थं सव्वत्थ चरपुरिसा पेसिआ, कत्थवि य तस्स पउत्ती न उवलद्धा / अओ स एव बंधुदुक्खेण दुहिओ कटेण दिवसे नेइ /
SR No.004268
Book TitlePaiavinnankaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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