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________________ पाइअविन्नाणकहा-१ पुत्तेणवि तहा विहिए, नरिंदस्स पासे उवागम्म मंतिणा निवेइअं-'हे राय ! रायकुलसेवाओ पुरिसपरंपरत्तं एवं दव्वं नियायत्तं अत्थि ' / रण्णा भणियं-'मा बीहसु' त्ति / मंतिणा 'को जाणइ, किं भविस्सइ' एवं वोत्तूण अणिच्छंतो वि राया एवं मंजूसं पडिच्छाविओ / सा मंजूसा राइणो भंडारगिहमि नीया / भणियं च-'हे देव ! इह मज्झ सव्वसारं संचिट्ठइ, पक्खं जाव मज्झोवरोहाओ चेव सव्वायरेण संरक्खिज्जउ / / तओ रण्णा तीसे मंजूसाए निविडाइं तालगाइं दिण्णाइं, सव्वओ सीसगमुद्दाओ वि दिण्णाओ / पइपहरं च तीसे रक्खणत्थं दोण्णि दोण्णि पाहरिआ वि ठविआ / एवं कयसुविहाणो सइवो विम्हएणं किं एसो मज्झ पओगो विहडेज्जा, अचिंतचरियं दिव्वं, किं च न होज्जा' ? एवं खणेण विसाएण छुप्पंतो जाव चिट्ठइ ताव तेरसम्मि वासरे पभायसमए कण्णंतेउरम्मि नरवइस्स कन्नाए वेणीछेओ जाओं, केण कओ इइ निमित्तचिंताए, जेतुण मंतिसुएण कओ' त्ति पवाओ संजाओ-जह किल नियमंदिरसेज्जापरिसंठिअं एअं रायकण्णं समागम्म जिट्ठो
SR No.004268
Book TitlePaiavinnankaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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