________________ बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी ] नवकार मन्त्र माहात्म्य [9 5. नवकारमन्त्र माहात्म्य यह पंचपरमेष्ठी नवकारका स्मरण गौणरूपसे बाह्य कार्यसिद्धि भी करता है। परन्तु मुख्यतया संसाररूपी व्याधिको मिटाने के लिए मुख्य औषधरूप है। जिस तरह किसान अनाजकी फसल तैयार करने के लिए अनेक प्रकारके बीज बोकर, वृद्धि-विकासके लिए जल सींचता है, उससे उपे अन्नकी प्राप्ति तो होती है ही, लेकिन साथ साथ घास आदिकी प्राप्ति जिस तरह बिना प्रयत्न सहज ही होती है, उसे उत्पन्न करनेके लिए किसी अन्य प्रयत्न करनेकी जरूर नहीं होती। वैसे मोक्षसिद्धि के हेतु स्मरण किये जाते इस मन्त्रसे बाह्य उपद्रव सहज ही दूर हों उसमें सोचने-विचारनेकी कुछ जरूर नहीं / परन्तु शुद्धभावसे त्रिकरणयोगकी एकाग्रतासे आराधित यह महामंत्र मुक्ति सुखका तो अवश्य साधन बनता है / यह मन्त्र किसी भी कार्यके प्रारम्भमें भी गिना जाता है, यह मन्त्र सर्व कल्याणकारी होनेसे जरूरत पड़ने पर किसी भी काल या स्थान पर किसी भी स्थितिमें गिननेकी महापुरुषोंने आज्ञा दी है। जैसे कि भोयणसमये सयणे, विबोहणे पवेसणे भए वसणे / . . पंचनमुक्कारो खलु, समरिज्जा सव्वकालेऽपि // अर्थः-भोजनके समय, शयनके समय, जागते, प्रवेश करते, भयके समय, निवास करते वक्त, ऐसे सर्व समय पर इस पचनमस्काररूप मन्त्रको अवश्य याद करना चाहिए / जिससे इष्टकी सिद्धि प्राप्त हो / इस नवकार मन्त्रके महान प्रभावको सूचित करते हुए एक महर्षि लिखते हैं कि अपुव्वोकप्पतरु, चिंतामणी कामकुम्भकामगवी। जो ज्झायई सयलकालं सो पावइ सिवसुहं विउलं // 1 // नासेई चोरसावय-विसहरजलजलणबंधणभयाई / चिंतितो रुरकस्सरणरायभयाई भावेण // 2 // ___ अर्थः-यह मन्त्र अपूर्व कल्पवृक्ष, चिंतामणि, कामकुम्भ और कामधेनु समान है। जो मनुष्य सदाकाल उसका ध्यान करता है, वह विपुल शिवसुखको प्राप्त करता है। (1) साथ ही भावपूर्वक उसका स्मरण चोर, सिंह, सर्प, जल, अग्नि, बन्धनके भय आदि तथा सं. 2