________________ 8 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ नवकारमंत्रकी महिमा उत्तम गिने जाते हैं / विश्वकी महापवित्र व्यक्तियाँ ये पाँच ही हैं। जिस तरह गुण गुणवान् बिना रह नहीं सकते, उसी तरह सारे जैन सिद्धांतका तत्त्व इन पाँचोंमें समाया हुआ है, इसीलिए यह महामंत्र रूप है / जव इष्टसिद्धि हेतु जो चाहे वैसे मंत्र भले ही गिने-बोले परन्तु इस नवकार मत्रसे अधिक कोई मंत्र नहीं है। यदि सापेक्ष भावसे कहें तो अन्य स्तोत्र, मन्त्र-तन्त्रादि तो इस मत्रके प्रकाररूप हैं। इस नवकार मत्रका माहात्म्य जैनशासनमें कूटकूटकर भरा है। यह मन्त्र सर्वोत्तम और सर्वश्रेष्ठ होनेसे ही श्री भगवतीसूत्र जैसे महान ग्रंथके प्रारम्भमें उसका आदर किया गया है / साथ ही यह परमेष्ठिमंत्र चौदहपूर्वके साररूप है / इसीलिए मंगल है / जिसके लिए कहा है कि 'जिणसासणस्स सारो चउदसपुबस्स जो समुद्धारो। जस्स मणे नवकारो, संसारो तस्स किं कुणई 1 // ' ___ अर्थ :-" चौदह पूर्वमेंसे उद्धृत [ अथवा 14 पूर्वके उद्धार स्वरूप ] जिनशासनका सार, ऐसा नवकार मंत्र जिसके हृदयमन्दिरमें गुंजन करता है, उसे ससार क्या कर सके ?" अर्थात् कुछ भी करने समर्थ नहीं है। फिर भी शिष्टाचार. पालन आदि अनेक कारणोंसे मंगल करनेकी आवश्यकता है। इस सम्बन्धी विशेष वर्णनके लिए 'विशेषावश्यकभाष्य' महाग्रंथ देखें / ___संसारसागरमें डूबती हुई आत्मा, इस नवकार मन्त्रकी ध्यानरूपी नौकासे उद्धार पाती है, इतना ही नहीं किन्तु चाहे कैसे भी दुःखी संगेगमेंसे बचनेके लिए इस नवकार मन्त्रका स्मरण कोई अद्भुत प्रकाश देनेवाला हो जाता है। चौदह पूर्वधर भी मरणान्तकालमें, चौदपूर्वके नवनीत समान नवकार मन्त्रका ही ध्यान करते हैं / इस मन्त्र के प्रभावसे कितनी ही आत्माएँ संसारसागरको पार कर गई और पार करेंगी / कितनी ही आत्माएँ तो संसारके दुःखदायी पाशको इस मन्त्रके स्मरणद्वारा छेदने के साथ आधि, व्याधि और उपाधिरूप ससारव्यथाको नष्ट करके सुखानन्दका अनुभव ले चुकी हैं / कितनी ही आत्माएँ इस मन्त्रके स्मरणरूप प्रबल साधनसे आत्मसिद्धियाँ भी पा रही हैं। यह मंत्र उभयलोकमें अर्थात् इस लोक और परलोकमें हितकारी है / कहा है कि_ 'हरइ दुहं कुणइ सुहं, जणइ जसं सोसए भवसमुदं / ___ इहलोए परलोए, सुहाणमूलं नमुक्कारो // 1 // ' अर्थ :-दुःखको हरता है, सुख देता है, यश उत्पन्न करता है, भवसमुद्रको शोषता है। ज्यादा क्या कहें ? इस लोक और परलोकमें सारे सुखोंका मूल नवकार मंत्र ही है।