________________ ब. सं..४५ नील " < // षड् लेश्यावर्णादि विषयकयंत्र // [ गाथा-३४४] लेश्यानाम - वर्ण / गंध ___रस | स्पर्श जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति . | कृष्णलेश्या कृष्ण दुरभिगंध कटुक | शीत-ऋक्ष | अन्तर्मुहूर्त / 2 अन्तर्मुहूर्त अधिक 33 सागरोपम 2 नीललेश्या तीखा पल्योपमासंख्येय भागाधिक 10 सा० कापोतलेश्या कपोत वर्ण तूरा पल्योपमासंख्येय भागाधिक 3 सा. तेजोलेश्या रक्त वर्ण सुरभिगंध मिष्ट स्निग्ध-उष्ण पल्योपमासंख्येय भागाधिक 2 सा० पद्मलेश्या पीत वर्ण मिष्टतर दो अन्तर्मुहूर्त अधिक 10 सागरोपम शुक्ललेश्या श्वेत वर्ण मिष्टतम दो अन्तर्मुहूर्त अधिक 33 सागरोपम // सप्तसमुद्घातमें सप्तविषय स्थापना यन्त्र // [ गाथा--३४४] ... कितनीबार समुद्घातके नाम . स्वामि कौन कालमान व्याप्ति क्षेत्र कानस, | आकार | फल प्राप्ति की 1 | वेदना समु० / वेदनासे व्याकुल जीवको | अन्त- | स्वदेह प्रमाण | अशाता वेदनीय | देह दंडाकार | वेदनीय कर्मकी | सर्व भवमें मुहूर्त. अतिनिर्जरा 2 | कषाय समु० कषायसे अति व्याकुल कषाय मोहनीय | " कषायका अ कषायकी अतिनिर्जरा | अनंतबार आत्मा समु० अयोगीको छोडकर सभी दीर्घ-उत्पत्ति आयुष्य दंड कुहनी-हल- आयुष्यकी अति | जीवोंमें अन्तम० आयु क्षेत्र तक गोमूत्रिका शीघ्र निर्जरा शेष रहता है समु० | उत्तर वैक्रिय रचयिताको संख्येय योजन वै. शरीर नामकर्म | दण्डाकार |0 कर्मनिर्जरा, ग्रहण | एक भवमें दो बार | तैजस समु० तेजोलेश्या छोडनेवाले , , तेजस शरीर | दीर्घ दण्डाकार | तैजस कर्मनिर्जरा, | अनंत बार जीवको नामकर्म ग्रहण | आहारक समु० लब्धिवंत चौदह पूर्वधरको | , | महाविदेह तक | आहा० देह नाम- | , आ० कर्मनि० ग्रहण | भव चक्रमें कर्म 4 बार केवली समु० सयोगी केवलीको 8 समय | संपूर्ण लोकाकाश | नाम-गोत्र वेदनीय | दंड कषाय- नाम-गोत्र-वेदनीय स्थिति सर्व भवमें नामकर्म से मंथन लोकाकार आयुः जितनी होती है। एक बार