________________ // पाँच प्रकारके शरीरों में अनेक विषय स्थापना प्रदर्शक यन्त्र // [गाथा-३४४] उपयुक्त द्वार | औदारिक शरीर | वैक्रिय शरीर | आहारक शरीर | तैजस शरीर कार्मण शरीर 1. कारणकृत विशेष स्थूल पुद्गलोंका। औदारिकसे सूक्ष्म वैक्रियसे सूक्ष्म आहारकसे सूक्ष्म | तैजससे सूक्ष्म 2. प्र.सं. कृत वि.] अति अल्प | औ. से असंख्यगुना वै. से असंख्यगुना आहा.से अनंतगुण | तै. से अनंतगुण 3. स्वामिकृत | सर्व तिर्यंच, मनुष्य / / देव-नारक ग. तिरिनरो कुछ 14 पूर्वधरको | सर्व संसारी जीवोंको | सर्व संसारी जीवोंको विशेष बा. प. वायुकायको 4. विषयकृत विशेष| ऊर्ध्वपंडुकवन, तिर्यक् | असंख्य द्वीप-समुद्र महाविदेह तक लोकान्त [और परभव लोकान्त [विग्रह रूचकद्वीपके रूचकपर्वतपर जाते ] तक गतिमें ] 5. प्रयोजनकृत धर्माधर्म - मोक्षप्राप्ति | एक-अनेक, स्थूल बादर सूक्ष्मसंशय छेदनेके लिए | आप-वरदान-तेजोलेश्या अन्न | अन्य भवमें गतिमान विशेष संघसहायादिक निमित्तक जिनऋद्धि दर्शनादि पाचनादि 6. प्रमाणकृत भेद | साधिक 1000 योजन | साधिक एक लाख योजन 1 मुण्डा हाथ | संपूर्ण लोकाकाश | संपूर्ण लोकाकाश 7. अवगाहनाकृत | आहार से संख्यगुना औदा. से संख्य गुना असंख्य अवकाश | वैक्रियसे असंख्यगुण प्रदेशोंमें | तैजस तुल्यप्रदेश भेद प्रदेशमें आकाश प्रदेशमें प्रदेशोंमें 8. स्थितिकृत भेद | जघ, अन्तर्मु., उ. | ज. 1000 साल,उ.३३ सा. | जघन्य अन्तर्मुहूर्त भव्य और अनादि सान्त | तैजसकी परिभाषाके 3 पल्योपम उ. वै. चार अंतर्म. उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अभव्य और अनादि अनंत | अनुसार उ. अर्धमास 9. अल्पबहुत्व भेद वै. से असंख्य गुना असंख्य .. | 9000 [उ. कालपर ] ! अनंत . अनंत 10. . अंतर एक | साधिक 33 सागरोपम | आवलिका के असंख्य भाग, | अर्धपुद्गल परावर्त | अन्तर ... नहीं है | अन्तर नहीं है जीवाश्रयी पुद्गल परावर्तके समय जितने ११.अनेकजीवाश्रयी अन्तर नहीं है अन्तर पड़ता ही ज. समय, उ. 6 मास | अन्तर नहीं है अनंत कभी भी। होता ही नहीं है।