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________________ * लेश्याद्वारका स्वरुप . * 293 . नब्ज (नाडी) जैसा कहा है। शेष सातों कौके मेलमिलाप ( संयुक्ति, संयोग) तथा उसके कटु विपाकमें मोहनीय कर्मकी राग-द्वेषकी अनुभूतियाँ ही मुख्य और महत्त्वपूर्ण हिस्सा लेती हैं। इसलिए अगर उसका नाश पहले हो गया तो शेष सभी कर्मोंका क्षय भी जल्दीसे हो सकता है। इन्हीं कारणोंसे इन कषायोंसे तथा नौ नोकषायोंकी भावनाओंसे सदा बचकर रहना ही इस विषयकी जानकारी पानेका वास्तविक फल है / ७-लेश्या [लेश्या] लेश्या आखिर क्या चीज है, इस विषयमें आगमोंकी टीकाओंमें तथा अन्य ग्रन्थों में बहुत कुछ लिखा हुआ मिलता है, फिर भी 'लेश्या 'के विषयमें कुछ कुछ जानकारी गूढार्थक भी रही है / लेकिन यहाँ पर तो संक्षिप्तमें ही लेश्याके विषयमें बताना है। आलिंगन अथवा मिलनके अर्थमें संबंधित ‘श्लिष् ' धातु परसे 'लेश्या' शब्द बनता है। इससे जिस* चीजके कारण जीव कर्मके साथ जुड़ता है, बंधनग्रस्त होता है, उसका नाम है लेश्या अथवा कृष्णादि विविधरंगी द्रव्योंके संबंधसे उत्पन्न होते आत्माके शुभाशुभ परिणामविशेषको लेश्या कहा जाता है। जिस प्रकार स्फटिक रत्नके मणकेमें जिस रंगका धागा पिरोयेंगे तो उसी रंगका ही वह दिखायी देता है, उसी प्रकार आत्मामें जिस-जिस प्रकारके लेश्या द्रव्य उत्पन्न होते हैं; आत्मफल भी उसी प्रकारका ही प्राप्त होगा। यह नतीजा पैदा करनेवाला - पुद्गल द्रव्य ही है। यह लेश्या द्रव्य और भाव ये दो प्रकारकी होती है। इनमें द्रव्यलेश्या पुद्गल स्वरूप होनेके कारण वर्ण, गंध, रस और स्पर्शयुक्त है। द्रव्य लेश्याके आलंबनसे. ही जो आत्मपरिणाम उत्पन्न होता है उसे भाव लेश्या कहा जाता है / यह लेश्या अनंत वर्गणा और अनंत प्रदेशयुक्त है। लेकिन यह वर्गणा किस+ प्रकारकी है इसकी जानकारी मिली नहीं है, लेकिन द्रव्यलेश्याके पुद्गल योगान्तर्गत है इस लिए जब तक योग है तब तक उसका अस्तित्व भी है / ये लेश्या द्रव्य कषायोंको उद्दीप्त करनेमें महत्त्वपूर्ण हिस्सा रखते हैं / - अब यहाँ पर वर्णकी प्रधानताको लक्षित करके स्पष्ट रूपसे समझनेके लिए वर्ण= रंगके छः प्रकारके नामोंके साथ संकलित करके लेश्याकी कक्षाओंको छः प्रकारमें विभक्त कर दिया है। जिनके नाम अनुक्रमसे इस प्रकार है-.१. कृष्ण (काला ), 2. नील, __* श्लिष्यते कर्मणा सह आत्मा अनयेति लेश्या / + बादर परिणामी स्कंधयुक्त होनेसे औदारिक अथवा वैक्रिय वर्गणाके प्रकारकी संभवित है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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