________________ * संस्थानद्वारका विवेचन * ओजप्रदेशी घनचतुरस्र—यह संस्थान 27 प्रदेशी तथा 27 प्रदेशावगाही है। पूर्वोक्त प्रतर चतुरस्रके समय स्थापित नौ प्रदेशात्मक प्रतरके ऊपर तथा नीचे नौ-नौ अणु स्थापित करनेसे यह रचना बनती है / युग्मप्रदेशी धनचतुरस्र—यह अष्टप्रदेशी तथा अष्टप्रदेशावगाही है। इसमें चारप्रदेशके प्रतर चतुरस्रके ऊपर तथा नीचे चार अणु स्थापनेसे बनता है। ५–आयत (लम्बा, विस्तृत) आयतके दो प्रकार हैं----१. ओज और 2. युग्म / लेकिन इन दोनोंके घन तथा प्रतर के अतिरिक्त श्रेणि प्रकार भी इस संस्थानमें निष्पन्न होता है / इस प्रकार यह संस्थान तीन-तीन प्रकारकी स्थापना बताते हैं / ओजप्रदेशी श्रेणिआयत—यह संस्थान त्रिप्रदेशी-त्रिप्रदेशावगाढ है। इसकी रचना तिरछे अंतररहित तीन प्रदेश रखनेसे होती है / युग्मप्रदेशी श्रेणिआयत—यह तिरछे संलग्न दो अणु स्थापनेसे होता है / ____ओजप्रदेशी प्रतरायत-पंद्रह प्रदेशी तथा पंद्रह प्रदेशावगाही यह संस्थान है। इसमें पहलेकी तरह तीन पंक्तियोंमें पाँच पाँच अणु प्रस्थापित किये जाते हैं / .. युग्मप्रदेशी प्रतरायत—यह छः प्रदेश तथा छः प्रदेशावगाही है / यह संस्थान मी पहलेके समान दो पंक्तियोंमें तीन-तीन-अणु रखनेसे बनता है। ___ ओजप्रदेशी घनायत-इसमें 45 प्रदेश तथा 45 प्रदेशावगाढ मिलते हैं / पूर्वोक्त पंद्रह प्रदेशका प्रतरायत जिस प्रकार बनाया था उसी प्रकार बनाकर उसके नीचे तथा ऊपर पंद्रह-पंद्रह अणु प्रस्थापित किये जाते हैं। . युग्मप्रदेशी घनायत—यह बारह प्रदेशी तथा बारह प्रदेशावगाही संस्थान है / यहाँ मी पूर्वोक्त छः प्रदेशके प्रतरायत पर उसी प्रकार ही बारह प्रदेश रखनेसे घन आकृति हो जायेगी / इस प्रकार इससे छोटे आकार असंभवित है / यहाँ पर सबसे छोटी आकृतियाँ ऊपर बता दी है / इससे बढते-बढते उत्कृष्टपनसे संख्य-असंख्य यावत् अनंत प्रदेशी आकार बनते हैं / इन आकृतियोंकी संभवित झाँकी (छाया) उसके चित्रोंके माध्यमसे बता सकते हैं। इन्हीं आकृतियोंके अतिरिक्त पाँच संस्थानोंके सहयोगसे दूसरे असंख्य संस्थान-आकार अथवा आकृतियाँ निष्पन्न होते हैं।