________________ . 242 . * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . आभ्यन्तर निवृत्तिरूप पांचों इन्द्रियोंके स्थान प्रमाण आकारादि 1. स्थान- (1) स्पर्शेन्द्रिय-मात्र ऊपरकी दीखती चमडी स्पर्शेन्द्रिय है ऐसा नहीं, परंतु चमडीके भागके साथ ही ओतप्रोत बनकर रहा चक्षुसे देखा न जा सके ऐसा पुद्गलोंका बना एक विलकुल पतला स्तर है, वही स्पर्श नामकी इन्द्रिय है। यह इन्द्रिय समग्र शरीरके तमाम प्रदेशोंमें व्याप्त होकर रही है। दूसरी इन्द्रियाँ जहाँ जहाँ हैं वहाँ भी स्पर्श तो अवश्य होता ही है। साथ ही यह इन्द्रिय अंदरके भागमें भी ऊपरकी तरह व्याप्त होकर स्वशरीराकारमें रही है। और इसी लिए ऊपरकी चमडीको स्पर्शन इन्द्रियके प्रभावसे स्पर्शानुभवजन्य शीतोष्णादिका ज्ञान होता है। वैसे ठंडा जल या गरम चाय पीने पर अंदरके भागमें भी शीतोष्णादिका अनुभव होता है। (2) रसनेन्द्रिय-दीखती हुई ऊपरकी जीभ वह नहीं है / वह तो इन्द्रियको रहनेका स्थान-साधन है। इन्द्रिय तो जिह्वाके ऊपर और नीचेके भागमें जिह्वाके पुद्गल प्रदेशके विच ओतप्रोत होकर रही है। लेकिन वह सिर्फ जीभके विचके भागमें नहीं होती। (3) घाणेन्द्रिय-दिखाई देती नासिका घ्राणेन्द्रिय नहीं है। परंतु उसके अंदरके पोलेपनमें, ऊपरके भागमें नासिकाके मापके अनुसार रही इन्द्रिय ही घ्राणेन्द्रिय है। (4) चक्षुइन्द्रिय-दिखाई देता चक्षु या पुतली इन्द्रिय नहीं है। परंतु उसके अंदर पुतलीके मापके अनुसार व्याप्त वस्तु ही इन्द्रिय है। (5) श्रोत्रेन्द्रिय-कानका ऊपरका भाग कर्णइन्द्रिय नहीं है। परंतु कानके अंदरके परदेमें व्याप्त होकर रहा पौद्गलिक पदार्थ श्रोत्र इन्द्रियरूपमें है / पांचों इन्द्रियाँ अत्यन्त सूक्ष्म होनेसे अपने चर्मचक्षुसे देखी नहीं जातीं / 2. प्रमाण-माप- कलश पर चढाया हुआ सोनेका गिलट कितना पतला होता है ? वैसे इन पांचों इन्द्रियोंके पौद्गलिक स्तर अत्यन्त पतले परमाणुओं (-स्कंधों) के बने हैं। उन सबकी मोटाई एक अंगुलके असंख्यातवें भागकी है। __चौडाई और लंबाई सबकी एक समान नहीं हैं। नासिका, नेत्र और कर्ण इन तीन इन्द्रियोंकी लंबाई-चौडाई एक अंगुलके असंख्यातवें भागकी है। जीभकी अंगुल पृथक्त्व अर्थात् दो से नौ अंगुलकी हैं / और स्पर्शेन्द्रियकी स्वस्व देहाकार प्रमाण समझनेकी है। स्पर्शेन्द्रियका माप-प्रमाण उत्सेधांगुलसे और शेष चारोंकी लंबाई-चौडाईका माप आत्मांगुलसे समझना और मोटाईका माप उत्सेधांगुलसे गिननेका है /