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________________ * 220 . * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * % 3E चारों गति आश्रयी पर्याप्तिक्रम। ___ औदारिक शरीरी मनुष्य और तिर्यच इन दो गतिके तमाम जीवोंकी प्रथम आहार पर्याप्ति एक समयमें ही पूर्ण होती है और उसके बाद अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त्तकाल पर अनुक्रमसे शेष शरीर-इन्द्रिय आदि पांचों पर्याप्तियाँ पूर्ण होती हैं / सबका सामूहिक काल भी अन्तर्मुहर्त होता है, क्योंकि अन्तर्मुहूर्त-काल के माप-प्रकार असंख्य हैं। वैक्रिय शरीरी ऐसे देव, नारक आहार पर्याप्ति प्रथम समयमें पूर्ण करते हैं, शरीर पर्याप्ति एक अन्तर्मुहूर्तमें, और शेष चार अनुक्रमसे एक एक समयके अन्तरमें समाप्त करते हैं। यहाँ सिद्धान्तमें देवको भाषा तथा मनकी पर्याप्ति समकाल पर एक साथ समाप्त होनेका बताया है, उस अपेक्षासे देवको छः नहीं लेकिन, पांच पर्याप्तियाँ बताई हैं। जीव उत्तर-वैक्रिय शरीर बनावे तब और कोई चौदहपूर्वधर आहारक शरीर रचे तब पर्याप्तिका क्रम देवकी पर्याप्तिकी व्याख्या अनुसार समझना / उत्तरदेहके लिए पर्याप्तिकी भिन्न रचना कोई लब्धिवंत जीव उत्पत्तिस्थानमें आकर अपने मूल शरीरकी रचनाके समय पर स्वयोग्य चार अथवा छः पर्याप्तियोंको ही समाप्त करता है। उन पर्याप्तियोंसे वह जीव सारे भव पर्यन्त पर्याप्ता गिनाता है / परन्तु वैक्रियादि लब्धिवाला वह जीव प्रस्तुत पर्याप्तावस्थामें जिस नूतन शरीर अर्थात् वैक्रिय शरीरको बनावे, तब उसी शरीर योग्य चार अथवा छः पर्याप्तियाँ जो रचनी पडें उन्हें फिरसे नये सिरेसे ही रचता है / उत्पत्तिके समय पर रची पर्याप्तियाँ उत्तमशरीरके लिए उपयोगी नहीं होतीं / जिन लब्धि पर्याप्ता बादर वायुकाय जीवोंमेंसे कतिपय वायुकाय जीव वैक्रिय शरीर रचनेमें समर्थ हैं, उन्होंने उत्पत्तिके समय पर औदारिक शरीर विषयक जो चार पर्याप्तियाँ रची थीं वे विद्यमान होने पर भी दूसरा नूतन उत्तरवैक्रिय शरीर रचते समय फिरसे नई ही चार पर्याप्तियोंको रचनी पड़ती हैं / __इसी तरह आहारक शरीरकी लब्धिवाला लब्धिवन्त *चौदह पूर्वधर महात्माको आहारक शरीर रचने पर उत्पत्ति समयकी औदारिक विषयक छः पर्याप्तियाँ शरीर रचनामें काम नहीं आती इसके लिए तो उन्हें आहारक देहके योग्य नयी छः पर्याप्तियोंकी रचना करनी ही पड़ती है। * आहारक शरीर चौदह पूर्वधरकी लब्धिवाला ही रच सकता है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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