________________ * दोनों गतिमें परभवायुष्यका उदय और आहार कब हो?.। . 183 . अन्तसमय-चालू भवके आयुष्यकी समाप्ति होना, और फिर तुरंत ही परभवायुष्यका उदयमें आना, इसे मृत्यु भी कहा जा सके। . ऋजुवकागति-जीव अन्त समय पर आयुष्य पूर्ण करके परभवमें जाता है,, तब जीवको एक समयकी ऋजुगति तथा चार-पांच समय तककी अर्थात्--एक वक्रा, द्विवक्रा, त्रिवक्रा और चतुर्वक्रा, ये दो-तीन-चार और पांच समयवाली वक्रागतियाँ उदयमें आती हैं / ____अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाणकी अति सूक्ष्म मानवाली संसारी आत्मा तैजस -कार्मण नामके सूक्ष्म शरीरको धारण करके परभवमें उत्पन्न होनेके स्थान पर दो गतिसे पहुँचता है। एक ऋजु और दूसरी वक्रा / ऋजुगति एक ही समयकी है, क्योंकि जीवका मृत्युस्थान और उत्पत्तिस्थान दोनों समश्रेणिसे अथवा समांतर पंक्तिसे व्यवस्थित हो तो, मृत्युसमय वादके एक ही समयमें जीव उत्पन्न हो जाता है। इसे दूसरा समय लगता ही नहीं है। इसीलिए इस गतिका ऋजु यह नाम अन्वर्थक है। ऋजु अर्थात् सरल-सीधी गतिको समश्रेणिसे न हो लेकिन तिर्छ-विदिशामें सीधा न हो तो जीवको ( आकाश प्रदेशकी श्रेणिमें ) काटकोन करके बढना पडता है। आत्माकी गति हमेशा सीधी ही दिशागत होती है किन्तु तिरछी या चाहे उस रीत से जानेकी नहीं होती। वह तो प्रथम सीधी जाकर फिर मुडे तो उसके मोडोंके काटकोन होते रहते हैं। जितने मोड लेने पडे उतने समय रास्तेमें बढते हैं। ऐसे मोड संसारी जीवोंको ( चतुर्विग्रहामें ) ज्यादा से ज्यादा तीन और किसी समय ( पंचविग्रहागतिमें ) चार होते हैं। [329] अवतरण-पूर्वोक्त दोनों गतिके ही विषयमें निश्चय और व्यवहार से परभवा• - युष्यका उदय और परभव विषयक आहार कब हो? उस संबंधों कहते हुए ऋजुगतिमें आहार और उदय तथा वक्रामें मात्र आयुष्यका उदय समय कहते हैं / उज्जुगइ पढम समए, परभवि आउअं तहाऽऽहारो। वक्काए बीअसमए, परभविआउं उदयमेइ // 330 // गाथार्थ-ऋजुगतिके प्रथम समय पर परभवके आयुष्यका उदय तथा प्रथम समयमें ही आहार और वक्रागतिमें द्वितीय समय पर परभवायुष्यका उदय होता हैं / // 330 // विशेषार्थ-गाथा १८८में ऋजु और वक्रागति विषयक ठीक ठीक समझ दी है, फिर मी थोडी अधिक स्पष्टताके साथ कुछ नई समझ मी जाननी जरूरी है।' .