________________ .. 182 . * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * अब त्रिभागकी घटना सोचे-जिस जीवका आयुष्य 99 बरसका हो, उस जीवको तीसरे भागसे परभवायुष्यका बन्ध पडे तो कव ? तो समझना कि 99 वर्षके दो भाग कम करें तो 66 वर्ष पूरे होने पर या 67 वें वर्षके प्रारंभके दिनोमें किसी भी क्षण बंध पडे / अब उस समय बन्ध न पडा तो शेष 33 वर्ष रहे, उसके नवे भागमें अर्थात् निन्यानबे वर्षमें 3 वर्ष 8 मास शेष रहे तब, परभवायुष्यका बंध पडता है, तब भी न बांधे तो फिरसे 3-8 महीनेमें 27 वें भागसे बांधता है / / - ऊपर परभवायुष्यके कालका जो सिद्धान्त या मर्यादा है, उसे स्थूल और सामान्य कक्षाके लिए जणाई है। सर्वथाके लिए यह नियम न समझना तथा यह अफर है ऐसा. भी न समझना.। [327-328 ] - अवतरण-इस तरह बंधकालके बारेमें कहकर अबाधाकाल और अंतसमय तथा प्रसंगोपात ऋजु तथा वक्रा गति कितने समयकी हो ? उसका स्वरूप भी कहते हैं / ' ‘जहमे भागे बंधो, आउस्स भवे अबाहकालो सो / / 3, अंते उजुगइ इग समय, वक्क चउपचसमयंता // 329 // गाथार्थ-जितने भागसे आयुष्यका बंध हुआ हो वहाँसे लेकर ( उस परभवायुष्य उदयमें न आवे तब तकका) अबाधाकाल कहलाता है। अन्तसमय अर्थात् मरणंसमय, उस अन्तसमयमें [ परभवमें जाते जीवको ] एक समयकी ऋजुगति तथा चार-पांच समयकी वक्रागति होती है / // 329 // . विशेषार्थ-जिन जीवोंने अपने आयुष्यके छः मास शेष रहे अथवा स्वायुष्यके त्रिभागसे-सत्ताइसवें या किसी भी भागमें परभवायुष्यका बंध किया हो, उस परभवायुष्यके बंधकालसे लेकर, जब तक वह बद्ध परभवायुष्य उदयमें न आवे, तब तकका अनुदय अवस्थारूप-अपान्तरालकाल (बिचका काल) उस जीवके आयुष्यका अबाधाकाल कहलाता है। जैसे कि देव-नारक या युगलिक अपने आयुष्यान्तके छः मास शेष रहे तब ही परभवायुष्यका बंध करते हैं। उस बंधकालके बाद छः मास व्यतीत होने पर मरण पानेसे उस बद्धायुष्यका उदय होता है। यहाँ बंधकाल और उदयकालके बिच छः मासका ही स्पष्ट जो अंतर पडा वही, उन जीवोंके लिए अबाधाकाल कहलाता है / . वैसे अन्तिम अन्तर्मुहुर्तका परभवायुष्य बांधे तो उसे अपान्तराल काल अन्तर्मुहूर्तका ही होनेसे उतना अबाधाकाल गिना जाए। ऐसा सर्वत्र समझ लेना।