________________ * आयुष्यका अबाधाकाल और अंतसमयकी व्याल्या. .181 . वाले तमाम प्रकारके देव, नरकगतिमें उत्पन्न होनेवाले नारक और असंख्य वर्षायुषी मनुष्य और तिर्यच समझना। इन जीवोंको चाहे ऐसे उपद्रव या संकट आवे तो भी उनकी अकाल मृत्यु होती ही नहीं / पीडाएँ होनी हों तो भले हों, लेकिन प्राणत्याग तो संपूर्ण आयुष्य पूर्ण होने पर ही होता है / . इन चारों प्रकारके निरुपक्रमी जीवोंके लिए एक ही नियम कि उनके बंधे आयुष्यके छः मास बाकी रहे कि तुरंत ही उसी समय नारकोंके लिए परभवायुष्यका बन्ध करे, फिर मी एक मत ऐसा है कि छः मास उत्कृष्टरूपसे समझना। लेकिन तब बंध न करे तो जघन्य मृत्युके बिच अंतर्मुहूर्त शेष रहे तव मी वह करे / ___दूसरे संख्यात वर्षके आयुष्यवाले एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जो निरुपक्रमायुषवाले हैं, वे अपने आयुष्यका तीसरा भाग शेष रहे तव अवश्य परभवायुष्यका बंध करते हैं / यह निरुपक्रमायुषीका बंधकाल कहा / इनमें सोपक्रमायुषवाले एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय अपने अपने आयुष्यका तीसरा भाग शेष रहे उस समय परभवके आयुष्यका बंध करते हैं। अथवा नवाँ भाग ( अर्थात् तीसरे भागके त्रिभाग) शेष रहे तब बंध करें, उस वक्त बंध न करें तो फिरसे सत्ताइसवाँ ( अर्थात् त्रिभाग-त्रिभाग-त्रिभाग) भाग शेष रहे तव अवश्य बंध "करें / सत्ताइसवें भागमें बंध न कर सकें तो अंतमें मृत्यु समयके अंतिम अन्तर्मुहूर्तमें तो अवश्य करें ही करें / क्योंकि अब अंतिम बंधसमय वही है / कुछ आचार्य मतांतरसे ऐसा कहते हैं कि सताइसवें भागमें बंध न हो तो फिर अंतिम अन्तर्मुहूर्त समय पर हो ऐसा भी नहीं है, लेकिन सताइसवें भागसे क्रमशः त्रिभागमें बंधकाल होता ही हैं। 478. कोई आचार्य युगलिकके लिए पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग शेष रहे तब परभवायुष्यका बंध मानते हैं / 479. पन्नवणादि सूत्रमें सिर्फ तीसरे, नवें भागमें' परभवायुष्य बांधे ऐसा कहा है, लेकिन उसका अर्थ तो 99 वर्षवाला 33 3 वर्षमें बांधे ऐसा भी हो जाए, लेकिन वह इष्ट नहीं है, अतः तीसरे भागसे नहीं, लेकिन तीसरा भाग शेष रहे, ऐसा समझना यह कथन सर्वको संमत है। 480. सिभत्तिभागे सिअत्तिभागे सिअत्तिभागत्तिभागतिभागे [प्रज्ञापना ] शेष त्रिभागमें अर्थात् 3, 9, 27, 81, 243, 729, 2187 इत्यादि जो अंक तीन तीन गुने हो उस रकमरूप भागकी कल्पना, उसे त्रिभाग कल्पना कहते हैं / 481. देखिए, भगवती श. 14 उ०१. /