________________ . 42. चाकान // चौथे पंकप्रभा नामक नरक में वृत्तादि नरकावासाओंका यंत्र // चौपंकशामें प्रत्तर | प्रतर | प्रत्तर | प्रतर | प्रतर | प्रतर | प्रतर | कुल 5 6 7 संख्या दिशा-विदिशाके 16-15 |15-14|14-13 |13-12 | 12-11 |11-10 | 10 - 1 | गोल 223 तीन भागकरनेसे त्रिकोण गो:त्रि:चौ. गो.त्रि.चौ. गो.त्रि.चौ. गो.त्रि.चौ. गो.त्रि.चौ. गो.त्रि.चौ. गो.त्रि.चौ.] 252 दि. 5-6-5/5-5-5/4-5-5|4-5-4|4-4-4|3-4-4|3-4-3 | . वि.H 232 |5-5-5/4-5-5/4-5-4|4-4-4|3-4-4|3-4-3|3-3-3 दोनोंका योगफल+ करक चारकी |10-11-10/8-10-10/8-10- 98-9-87-8-86-8-7/6-9-6| पंक्तिबद्ध संख्यासेगुननेसे |xx xx xx x 4 4 909 4 4 44 / 40-44-4036-80-80|32-40-36/32-36-3228-32-32/24-32-2824-28-24). पुष्यावकीर्ण +1 +1 +1 +1 919293 एक इन्द्रक मिलानेसे दोनों मिलकर 41-44-4037-40-40|33-40-36|33-36-32/29-32-3225-32-28/25-28-24|" प्रतिप्रतर पर कूल कुल संख्या कुल 125 कुल 117 |कुल 109 कुल 101 कुल 13 |कुल 85 कुल 99 |10 लारव. श्री बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी भाषांतर * + 8 +1 +1