________________ * श्रीबृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . नीचे की पृथ्वियों की अनुक्रम में जवन्यस्थिति बनती है / लेकिन रत्नप्रभा से ऊपर एक भी नरक न होने से यह नियम रत्नप्रभा के लिए ज़रूरी बनता नहीं है / अतः ग्रन्थकार स्वयं ही प्रथम रत्नप्रभा के नारकों की जघन्यस्थिति दस हजार साल होती है ऐसा बता देते हैं। अब शर्कराप्रभा की जघन्यस्थिति भी जान लें / ऊपर रत्नप्रभा पृथ्वी की उत्कृष्ट स्थिति जो एक सागरोपम की बतायी है उसे ही नीचे आयी हुी शर्कराप्रभा पृथ्वी की जघन्य स्थिति (एक सागरोपम की) जानें / इसी प्रकार अनुक्रम से शर्कराप्रभा की तीन सागरोपम की जो स्थिति है उसे वालुकाप्रभा की जघन्यस्थिति समझें और पंकप्रभा की सात सागरोपम जघन्य, धूमप्रभा की दस सागरोपम. तमःप्रभा की सत्रह सागरोपम की तथा तमस्तमःप्रभा की बाईस सागरोपमकी जघन्यस्थिति जाने / [202] मध्यमस्थिति-तमाम नारकों में जघन्य तथा उत्कृष्ट के बीचको मध्यमस्थिति समझें। ॥सातों नारकी की जघन्योत्कृष्टस्थितिका यंत्र // ___ नरक के नाम / उत्कृष्ट स्थिति जघन्य स्थिति . | 1 रत्नप्रभा 1 सागरोपम 10,000 साल 2 शर्कराप्रभा 1 सागरोपम 3 वालुकाप्रभा 4 पंकप्रभा 5 धूमप्रभा | 17 // 6 तम:प्रभा 7 तमस्तमःप्रभा | 22 " m 9 22 " अवतरण-प्रत्येक नारकी की समुच्चय-स्थिति को हम पहले बता चुके हैं। अब प्रत्येक नरक के प्रत्येक प्रतर में नारकों की स्थिति बताते हुए ग्रन्थकारश्री सबसे पहले रत्नप्रभापृथ्वी के प्रत्येक प्रतर पर प्रथम उत्कृष्टस्थितिका बयान करते हैं। नवइसमसहसलक्खा, पुवाणं कोडि अयर दस भागो। एगेगभागवुड्ढी, जा अयरं . तेरसे पयरे // 203 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् / / / 203 // विशेषार्थ-रत्नप्रभादिक पृथ्वी पर ही [वैमानिक कल्पवत् ] विभिन्न प्रतर संख्या आयी हुी है, जिसे ग्रन्थकार महाराज खुद ही आगे बतलानेवाले हैं। उनमें रत्नप्रभापृथ्वीपर ही तेरह प्रतर हैं, जिन के प्रथम प्रतर पर नारकों की उत्कृष्टस्थिति नब्बे हजार (90,000)