________________ अथ नरकगतिप्रसंग में प्रथम स्थिति द्वार // अवतरण-इस प्रकार चारों निकाय के देवों के भवन, उन की स्थिति, अवगाहना (छानबीन करना; देखना; बिचारना; ग्रहण करना), उपपात विरह, च्यवन विरह, एकसमय उपपात संख्या, एक समय च्यवनसंख्या उनकी गति, आगति आदि नौ द्वारों का वर्णन और साथ ही साथ अन्य प्रकीर्णक स्वरूप तथा ग्रन्थांतर से कुछ विशेष स्वरूप भी बता दिया है। उसी देवाधिकार को समाप्त कर के अब नरकगति संबंधी स्थिति प्रमुख नौ द्वारों को पूर्वोक्त क्रमानुसार वर्णन करते हुए, देवनिकाय की तरह ही प्रथम द्वारमें प्रत्येक नरकों में बसते नारकों की उत्कृष्ट-आयुष्यस्थिति बताते हैं / इअ देवाणं भणियं, ठिइपमुहं नारयाण वुच्छामि / इग तिनि सत्त-दस-सत्तर, अयर बावीस-तित्तीसा // 201 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् // 201 // विशेषार्थ-अधोलोक पर सात नरकपृथ्वी हैं। जिनके नाम-गोत्रादि हम आगे बतलायेंगे / यहाँ पर ग्रन्थकार उन पृथ्वियों पर आये हुए नारकों का आयुष्यप्रमाण वर्णित करते हुए पहली रत्नप्रभापृथ्वी के नारकोंकी उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति एक सागरोपम की बताते है / दूसरी शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकों की तीन सागरोपम की, तीसरी वालुकाप्रभा की सात सागरोपम की, चौथी पंकप्रभा में दस सागरोपम की, पाँचवीं धूमप्रभामें सत्रह सागरोपमकी, छट्ठवीं तमः प्रभा में बाईस सागरोपम की और सातवीं तमस्तमःप्रभा में काल, महाकाल आदि नरकावास में तेतीस सागरोपम की आयुष्यस्थिति है / [201] अवतरण-अब उन प्रत्येक की जघन्यस्थिति जाननेके उपाय (तरीके) तथा मध्यमस्थिति कहते हैं। ___ सत्तसु पुढवीसु ठिई, जिट्टोवरिमा य हिपहवीए / / होइ कमेण कणिट्ठा, दसवाससहस्स पढमाए // 202 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् // 202 // विशेषार्थ-गत गाथा में सातों पृथ्वियों की उत्कृष्टस्थिति बता दी है। अब जघन्य .. स्थिति को वर्णित करते हुए कहते हैं कि-उपर्युक्त पृथ्वियों की जो उत्कृष्ट स्थिति है वही २४अहवाए।