________________ देव सम्बन्धी संक्षिप्त समज ] गाथा-२०० [391 .३आठ कृष्णराजियोंके नाम 1. कृष्णराजी, 2. मेघराजी 3. मेघा 4. माघवती, 5. वातपरिघ, 6. वातपरिक्षोभ / 7. देवपरिघ, 8. देवपरिक्षोभ-ये आठ नाम हैं। ४-वैमानिकमें विमान–अवस्थित = शाश्वत, वैक्रिय तथा पारियानिक = अशाश्वत / (मनुष्यलोकमें आनेके लिए ) ऐसे तीन प्रकार हैं। ५-सौधर्म-ईशानके विमान कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र तथा शुक्ल ये पाँच वर्णो के, सनत्कुमार-माहेन्द्रके नील, लोहित, हारिद्र तथा शुक्ल इस प्रकार चार वर्णोंके, ब्रह्म-लांतकके विमान कृष्ण, नील, लोहित ऐसे तीन वर्णोके; महाशुक्र-सहस्रारके हारिद्र तथा शुक्ल ऐसे दो ही वर्णोके तथा इसके ऊपरि सभी कल्पोंके विमान सिर्फ श्वेत वर्णका ही हैं।। ६–सौधर्मावतंसक तथा ईशानावतंसक विमानोंका विष्कंभ ( लम्बाई-चौड़ाई ) 12 / / हजार योजन है। ___ चारों निकायाश्रयी लघुपरिशिष्ट 1. देवोंका जन्म, मनुष्य आदिके जन्मकी तरह गर्भावासमें रहकर होता नहीं है, लेकिन देवलोकमें देवोंका जो जन्मस्थान है जिसे ' उपपातसभा' नामसे शास्त्रकार संबोधते है; इसी सभामें वस्त्रसे आच्छादित विविध अनेक शय्याएँ होती हैं, जहाँ देव उत्पन्न होते हैं। इतना ही नहीं बल्कि मनुष्यकी तरह इन्हें बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था जैसी कोई भी अवस्था भुगतनी पड़ती नहीं है। लेकिन वहाँ उत्पन्न होनेके बाद एक ही अन्तर्मुहूर्तमें सभी पर्याप्ति पूर्ण करके युवा-तरुण अवस्थावाले बन जाते हैं। यह अवस्था उन्हें जीवनपर्यंत रहती है। जन्मके बाद पूर्वोत्पन्न देव उन्हें स्नान करानेके लिए 'अभिषेकसभा' (स्नानागार )में ले जाते हैं। स्नानादिक क्रिया पूर्ण होते ही तुरन्त ही उन्हें 'अलंकारसभा में ले जाते हैं, जहाँ देव सुन्दर-दिव्य वस्त्र तथा उत्तम एवं श्रेष्ठ अलंकार पहनते हैं। इस प्रकार वस्त्रालंकारसे सुशोभित बनकर चौथी 'व्यवसाय' सभामें ले जाते हैं, जहाँ विशाल पुस्तक भण्डार रहता है / इस भण्डारको इनके आगे खोल दिया जाता है और इसे पढ़कर देव देवलोकके योग्य विधि-नियम, आचार-परम्परा तथा स्वकर्तव्य एवं फर्जके ज्ञानसे सुमाहितगार बनते हैं। इसके बाद कायाकार्यके निर्णय तय करते हैं। व्यवसायसभामेंसे नन्दा बावडीमें जाकर स्नान करके पवित्र होकर, प्रचूर भक्तिपूर्वक जिनपूजा करते हैं। तदनन्तर जहाँ भोग-उपभोगकी अर्थात् अशनपानादिककी तथा मौज-शौककी और देवांगनाओंके योग्य विषयोपभोगकी सम्पूर्ण सामग्री तैयार होती है उसी 'सुधर्मसभा में वे जाते हैं और वहाँ देवलोक सम्बन्धी दिव्य भोगमें लीन (मग्न) होकर अपना समय व्यतीत करते हैं।