________________ .. 390 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-२०० चारों निकायी देवोंके 198 भेद किस प्रकार हैं ? ऐसे तो देवका अर्थ 'सभी देव' ऐसा कर सकते हैं। और चार निकायाश्रयी देवोंके सिर्फ चार ही भेद हैं ऐसा भी मान सकते हैं, लेकिन हमें विशद ज्ञान-अनुभव हो इस लिए शास्त्रमें विभिन्न दृष्टिस्वरूप देवोंके प्रकार बताये हैं, फिर भी चारों निकायमें अन्तर्गत प्रकार गिनती करके बताये गए हैं। = 25 '- 26 कुल संख्या इसकी दस निकायके भवनपति. और वहाँ वर्तित परमाधार्मिकके व्यन्तर और वाणव्यन्तरके व्यन्तर और ३५२तिर्यजंभकसे जाने पहचाने ज्योतिषी चर ज्योतिषी स्थिर ज्योतिषी -कल्पोपपन्न१२ देवलोकके तद्वर्तित किल्बिषिकके वैमानिक ___ , लोकान्तिकके निकाय -कल्पातीतनौ वेयकके ___ = 38 अनुत्तर देवलोकके 99 देवोंके प्रकार भेद हुए। इन 99 को समयकी अपेक्षासे सोचने पर पर्याप्ता और अपर्याप्ता दोनों मिलाकर 198 भेद बनते हैं। 352. तीर्थंकरादि जैसे विशिष्ट पुण्यवान् आत्माओंके आवासमें धन-धान्यादिककी पूर्ति ये देव करते हैं। उनके अन्नज़ंभक, पानजुंभक, वस्त्रजुंभक ऐसे 10 प्रकार हैं और ये जो जो चीज देते हैं उसी नामसे पहचाने जाते हैं।