________________ 282 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी . [ गाथा-१०८ अन्तिमप्रतरकी 201 विमानसंख्या 'भूमि' संज्ञक कहलाता है / (249 + 201 = ) दोनोंका जोड करनेसे 450 की संख्या हुई। उक्त कथनानुसार उसका आधा करनेसे २२५की संख्या अवशिष्ट रही, उसे सौधर्म-ईशानके (13) तेरह प्रतरोंसे गुना करनेसे (225 x 13 = ) २९२५की आवलिकागत विमानोंकी संख्या सौधर्म -ईशानके तेरहों प्रतरोंकी बनी / इस संख्याको पूर्वोक्त सौधर्म-ईशानगत जो 60 लाखकी विमानसंख्या उसमेंसे कम करनेसे (6000000 - 2925 = ) 5997075 विमानसंख्या पुष्पावकीर्णोकी प्रथम कल्पयुगलकी जानें / __ इस तरह आगे सनत्कुमारादि कल्पमें भी उक्त करण द्वारा इष्ट संख्या प्राप्त होती है, वह ग्रन्थविस्तारके भयसे यहाँ नहीं जणाते हुए ‘यन्त्र' देखनेकी ही सलाह देते हैं। .. .. // इति इष्टकल्पे विमानसंख्याकरणम् // // वैमानिकनिकायाश्रयी आवलिकागत तथा पुष्पादकीर्णविमान संख्या यन्त्र // + मुख | भूमि | समास | अर्ध |गुण्य प्र० आव० गत | पुष्पा० / कुल विमान संख्या | संख्या संख्या |संख्या / संख्या / संख्या | संख्या | संख्या 249 + 201 = 450 - 225 x 13 = 2925, 5997075 = 60 लाख * 197 + 153 = 350 - 175 x 12 = 2100, 1997900 = 20 लाख 149 + 129 = 278 - 139 x 6 = 834, 399166 = 400000 125 109 = 234 x 5 = 585, 49415 = 50000 105 + 93 = 198 - 99 x 4 = 396. 39604 = 40000 89 + 77 = 166 - 83 x 4 = 332, 5668 = 6000 73 + 61 = 134 - 67 x 4 = 268. 132 = 400 57 + 45 = 102 - 51 x 4 = 204, 96 = 300 41 + 33 = 74 -- 37 x 3 = 111, . = 111 29 + 21 = 50 - 25 x 3 = 75, 32 = 107 17 + 9 = 26 - 13 x 3 = 39, 61 = 100 5 + 0 = 0 - 0 x 1(0)= 5, नहीं है * = 5 7--00mm * दोनोंकी साथमें विमान नहीं हैं। x दोनों कल्पकी तिरपन-चोपन-पचपन तीनों प्रतरोंमें -पुष्पावकीर्ण