________________ 248 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90 सूर्योदय हुआ ऐसा ख्याल आता है। (जो बात पहले कही गई है) और उसी कथनके अनुसार भरतक्षेत्रके अर्ध विभागमें रहे हुए पांचों देशों में सूर्योदय तथा सूर्यास्त 12-10 या 8 घण्टे, किंवा क्रमशः घण्टे घण्टेका अन्तर रहे उसमें किसी प्रकारका विरोध आता हो ऐसा नहीं दीखता। इसी वस्तुका विशेष विचार करेंगे तो निश्चित मालूम होगा कि अहमदाबाद, बम्बई या पालितानादि किसी भी विवक्षित एकस्थानाश्रयी दिवसका प्रमाण बारह घण्टे, तेरह घण्टे, चौदह घण्टे या उसमें भी न्यूनाधिक भले रहे लेकिन दक्षिणार्ध भरतके पूर्व छोर पर जबसे सूर्यका प्रकाश पड़ा तबसे ठेठ पश्चिम तकके सूर्यास्तके समयकालको इकट्ठा करेंगे तो आठ प्रहर (अर्थात् 24 घण्टे ) तक समग्र भरतक्षेत्रके किसी भी विभागकी अपेक्षा क्रमशः सूर्यके प्रकाशका अस्तित्त्व हो उसमें किसी भी प्रकारका बाधक हेतु नहीं दीखता। पूर्व निपधके पासकी जगहसे सूर्यका उदय-देखाव होता होनेसे और पश्चिम निषधके पास जाए तब अदृश्य होता होनेसे उसका परिधिक्षेत्र लगभग सवा लाख योजन प्रमाण होता है और घण्टेके पांच हजार योजनके हिसाबसे सूर्यगति गिननेसे चौबीसों घण्टे सूर्य समग्र भरतमें दीखे उसमें हरकत नहीं है / श्री मण्डल प्रकरण २४४आदि ग्रन्थों में भी इसी कथनके निश्चयके लिए भरतक्षेत्रमें आठ प्रहर तक सूर्यका प्रकाश होनेका जताया जाता है, यह भी ऊपरकी बातको अधिक पुष्टि देता है। अतः अमरिकामें अमुक स्थल पर इस क्षेत्रकी अपेक्षा सूर्योदय लगभग 11 से 12 घण्टे विलंबित होता है, क्योंकि सूर्यको अपना प्रकाश वहाँ पहुँचाने में हमारी अपेक्षा विलंब होता है, सूर्य अपना प्रकाश ज्यादासे ज्यादा तिी श्रेणी में भरतकी तरफ 472633. यो० देता है। जबकि ये पाश्चात्य देश उससे दूर-दूर आए हैं। अर्थात् यहाँ दिन हो तब वहाँ रात्रि होती है और वहाँ रात्रि हो तब यहाँ दिन होता है। इस कारणसे अमरिकाको महाविदेह कल्पित करनेकी मूर्खता करना विचार शून्यता है। इस विचारणाको अधिक विस्तृत न करते यहाँ ही समाप्त करते हैं। इति तृतीय द्वार प्ररूपणा // 249. पढमपहराइकाला, जम्बूदीवम्मि दोसु पासेसु, लभंति एग समयं, तहेव सव्वत्थ नरलोए // 35 // टीका-पढ० / प्रथमप्रहरादिका उदयकालादारभ्य रात्रेश्चतुर्थयामान्त्यकालं यावन्मेरोः समन्तादहोरात्रस्य सर्वे कालाः समकालं जम्बूद्वीपे पृथक् पृथक् क्षेत्रे लभ्यन्ते / भावना यथा भरते यदा यतः स्थानात् सूर्य उद्वेति तत्पाश्चात्यानां दूरतराणां लोकानामस्तकालः / उदयस्थानाधोवासिनां जनानां मध्याह्नः एवं केषाञ्चित् प्रथम प्रहरः, केषाञ्चिद् द्वितीयप्रहरः, केषाञ्चित्तृतीयः प्रहरः, क्वचिन्मध्यरात्रः, क्वचित्सन्ध्या, एवं विचारणयाऽष्टप्रहरसम्बन्धीकालः समकं प्राप्यते / तथैव नरलोके सर्वत्र जम्बूद्वीपगतमेरोः समन्तात् सूर्यप्रमाणेनाष्टप्रहरकालसंभावनं चिन्त्यम् / / भावार्थ सुगम है /