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________________ ऋजुसूत्र नय जो नय भूतकाल और भविष्यकाल की पर्याय को छोड़कर मात्र वर्तमान पर्याय को ही ग्रहण करता है वह ऋजुसूत्र नय कहलाता है, क्योंकि अतीत के नष्ट हो जाने एवं भविष्य के उत्पन्न नहीं होने से उनमें व्यवहार नहीं हो सकता है। इसलिये इस नय में मात्र वर्तमान पर्याय को ही ग्रहण किया है। ऋजुसूत्र नय के भी दो भेद किये हैं - सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय और स्थूल ऋजुसूत्र नय। जिनमें जो नय एक समयवर्ती पर्याय को ग्रहण करता है वह सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय कहलाता है। जैसे सर्व क्षणिक हैं, शब्द क्षणिक है इत्यादि। जो नय वस्तु की पर्याय की स्थिति जितनी है उतनी स्थिति तक ग्रहण करता है वह स्थूल ऋजुसूत्र नय कहलाता है। जैसे मनुष्यादि पर्यायें अपनी-अपनी आय तक रहती शब्द नय - अब क्रमप्राप्त शब्दनय का स्वरूप कहते हैं - लिङ्ग, संख्या और साधन आदि के व्यभिचार को दूर करने वाला शब्द नय कहलाता है। जैसे पुष्प, तारा, नक्षत्र अथवा दारा, कलत्र, भार्या इनका एकार्थ रहता है। समभिरूढ़ नय - अब समभिरूढ़ नय का स्वरूप बताते हुए लिखते हैं कि - जो नय शब्दों के कई अर्थों को छोड़कर मुख्य रूप से जो शब्द रूढ होता है उसको ही ग्रहण करता है वह समभिरूढ़ नय कहलाता है। जैसे 'गो' शब्द वचन आदि अनेक अर्थ पाये जाने पर भी वह 'पशु' अर्थ में रूढ़ होने से इसको पशु रूप में माना जाता है।' एवंभूत नय - अब अन्तिम भेद एवंभूत नय के स्वरूप को बताते हैं - जो व्यक्ति या 'वस्तु जिस पर्याय में अथवा जिस कार्य में संलग्न हो उस समय उसको वैसा ही कहना एवंभूत नय कहलाता है। जैसे कोई व्यक्ति देवपूजा कर रहा हो तो तभी उसको पुजारी कहना परन्तु प्रतिसमय नहीं कहना।' स. सि. 1/33 लिङ्गसंख्यासाधनादिव्यभिचारनिवृत्तिपरः शब्दनयः। स. सि. 1/33 स. सि. 1/33, नयचक्र 41, आलापपद्धति सू. 78 वही 87 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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