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________________ को कोई व्यक्ति भात पकाने की सामग्री एकत्रित कर रहा था उससे कोई पूछता है कि या कर रहे हो? तो वह कहता है कि भात पका रहा हूँ। संग्रह नय अब क्रमप्राप्त संग्रहनय के स्वरूप और भेदों को कहते हैं - अपनी जाति का विरोध न करते हुए भेद सहित सब पर्यायों को एक मानकर सामान्य से सबको ग्रहण करता है वह संग्रह नय कहलाता है। जैसे सत्, द्रव्य, तत्त्व, पदार्थ आदि। संग्रहनय के दो भेद किये हैं। यहाँ पर आलापपद्धति और नयचक्र में दोनों भेदों के नामों में भेद दिखाई देता है। आलापपद्धति में सामान्य अथवा शुद्ध संग्रह तथा विशेष अथवा अशुद्ध संग्रह नय दिये गये हैं और नय नयचक्र में पर अथवा शुद्ध संग्रह तथा अपर अथवा अशुद्ध संग्रह नय है। इन दोनों में थोड़ा सा अन्तर सिर्फ नामों में है, परन्तु परिभाषाओं में कोई भी अन्तर नहीं है। जो नय परस्पर में विरोध न करके सम्पूर्ण पदार्थों को संग्रह रूप से ग्रहण करता है वह सामान्य संग्रह नय है। जैसे सभी द्रव्यों में परस्पर अविरोध है, क्योंकि सत् रूप हैं। जो नय एक जाति विशेष की अपेक्षा अनेक पदार्थों का ग्रहण करता है वह विशेष संग्रह नय कहलाता है। जैसे सभी जीव परस्पर में अविरोधी हैं। अजीवसमूह,.. हाथियों का झुण्ड आदि। व्यवहार नय इसके पश्चात् अब व्यवहारनय के स्वरूप को बताते हुए आचार्य लिखते हैं कि - संग्रहनय के द्वारा ग्रहण किये गये पदार्थों का विधिपूर्वक तब तक भेद करता है जब तक कि अन्य कोई भेद नहीं बनता, वह व्यवहार नय है। व्यवहार नय के भी दो भेद प्ररूपित किये हैं, सामान्य व्यवहार नय और विशेष व्यवहार नय। सामान्य संग्रह नय के विषयभूत पदार्थों में भेद करने वाला सामान्य व्यवहार नय कहलाता है। जैसे द्रव्य के भेद हैं जीव और अजीव। इसी प्रकार जो विशेष संग्रह नय के द्वारा विषयभूत किये हुए पदार्थों में भेद करता है उसे विशेष व्यवहार नय कहते हैं। जैसे-जीव के दो भेद संसारी और मुक्त ऐसे ही और भी भेद करना। 86 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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