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________________ क्योंकि अन्य द्रव्य के बन्ध बिना द्रव्य अशुद्ध नहीं हो सकता। कर्म बन्ध के कारण ही जीव संसारी हो रहा है, फिर भी कर्मबन्ध की अपेक्षा न करके उस संसारी जीव (अशुद्धात्मा) को शुद्धात्मा बतलाना शुद्ध द्रव्यार्थिक नय का प्रथम भेद है। यद्यपि संसारी अवस्था की अपेक्षा से इस नय का विषय सत्य नहीं है तथापि शुद्ध द्रव्य की दृष्टि से इस नय का विषय सत्य है। - अब द्रव्यार्थिक नय के द्वितीय भेद को बताते हुए आचार्य देवसेन स्वामी लिखते उप्पादवयं गौणं किच्चा जो गहइ केवला सत्ता। भण्णइ सो सुद्धणओ इह सत्तागाहओ समए।' जो नय उत्पाद व्यय को गौण करके केवल सत्ता को ग्रहण करता है उस नय को आगम में सत्ताग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहते हैं। इसके माध्यम से आचार्य देवसेन स्वामी ये कहना चाहते हैं कि 'द्रव्य का लक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य है तथा द्रव्य अनेकान्तात्मक अर्थात् नित्यानित्यात्मक है, किन्तु शुद्धद्रव्यार्थिक नय उत्पाद-व्यय को अप्रधान करके मात्र ध्रौव्य को ग्रहण करके (नित्य-अनित्य-आत्मक) द्रव्य को नित्य बतलाती है। अनेकान्तदृष्टि में इस शुद्ध-द्रव्यार्थिक नय का विषय यथार्थ नहीं है, तथापि 'एक धर्म को (अनित्य धर्म को) गौण करके नित्य धर्म को मुख्य करने से इस नय के विषय को सर्वथा अयथार्थ नहीं कहा जा सकता है। अब तृतीय भेद कहते हैं - जो नय गुणी-गुण आदि (स्वभाव-स्वभाववान्, पर्याय-पर्यायी और धर्म-धर्मी) चतुष्करूप अर्थ में निश्चय रूप से भेद नहीं करता है, वह भेद विकल्प निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहलाता है। इसी विषय को आचार्य देवसेन स्वामी ने और भी कहा है भावसंग्रह गा. 19, 'उत्पाद-व्यय गौणत्वेन सत्ताग्राहक: शुद्धद्रव्यार्थिको यथा द्रव्यं नित्यम्'। आलापपद्धति 48 त. सू. 5/30 गुणगुणियाइचउक्के अत्थे जो णो करेइ करेइ खलु भेयं। सुद्धो सो दव्वत्थो भेदवियप्पेण णिरवेक्खो।। न. च. गा. 20 79 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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