SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * समस्त द्रव्यों के परिवर्तन में सहकारी होना वर्तनाहेतृत्व है। * चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व का स्वरूप पहले देख चुके हैं। यहाँ कोई शंका करता है कि चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व ये आपने सामान्य गुण हैं ऐसा सिद्ध किया था परन्त आपने विशेष गुणों में ग्रहण किया है यह दोषयुक्त है। आप स्ववचन बाधित हैं? उसका समाधान करते हुए आचार्य कहते हैं कि - चेतनत्व सर्व जीवों में पाया जाता है इस अपेक्षा से सामान्य गुण है और अन्य पुद्गलादि द्रव्यों में नहीं पाया जाता है अत: उनकी अपेक्षा विशेष गुण है। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि स्वजाति की अपेक्षा गुण सामान्य हो जाते हैं और विजातीय की अपेक्षा वही गुण विशेष हो जाते हैं, क्योंकि जो सामान्य होता है वही विशेष हो जाता है और जो विशेष होता है वही सामान्य हो जाता है। स्वजाति और विजाति की अपेक्षा कथन करने से दोनों में कोई भी दोष प्रकट नहीं हो पाता है। ऐसे ही तीनों गणों में जान लेना चाहिये। द्रव्यों में विशेष गुणों को इस तालिका द्वारा समझ सकते हैं क्र.सं. द्रव्य विशेष गुण जीव ज्ञान, दर्शन, वीर्य, सुख, चेतनत्व, अमूर्तत्व पुद्गल स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, अचेतनत्व, मूर्तत्व धर्मगतिहेतुत्व, अचेतनत्व, अमूर्तत्व अधर्म स्थितिहेतुत्व, अचेतनत्व, अमूर्तत्व 5. आकाश | अवगाहनहेतुत्व, अचेतनत्व, अमूर्तत्व 6. | काल वर्तनाहेतुत्व, अचेतनत्व, अमूर्तत्व इस प्रकार जीव और पुद्गल द्रव्य में 6-6 विशेष गुण होते हैं और शेष निष्क्रिय धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन चार द्रव्यों के तीन-तीन ही विशेष गुण होते 62 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy