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________________ अब द्रव्यों के विशेष गुणों के विषय में वर्णन करते हैं। विशेष गुण 16 हैं जो निम्न प्रकार हैं ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, अवगाहनहेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व।' अब विशेष गुणों का सामान्य से स्वरूप वर्णन करते हैं जिस शक्ति के द्वारा आत्मा पदार्थों को आकार सहित जानता है वह ज्ञान कहलाता है। ज्ञान का स्वरूप आचार्य वीरसेन स्वामी कहते हैं कि - भूतार्थ का प्रकाश करने वाला ज्ञान होता है अथवा सद्भाव के निश्चय करने वाले धर्म को ज्ञान कहते हैं। जो सामान्य विशेषात्मक बाह्य पदार्थों को अलग-अलग भेदरूप से ग्रहण नहीं करके सामान्य अवभासन होता है उसे दर्शन कहते हैं।' * जो स्वाभाविक भावों के आवरण के विनाश होने से आत्मीक शान्तरस अथवा आनन्द उत्पन्न होता है वह सुख है।" * वीर्य का अर्थ शक्ति है। जीव की शक्ति को वीर्य कहते हैं। * जो स्पर्श किया (हआ) जाता है वह स्पर्श है। * जो चखा जाता है अथवा स्वाद को प्राप्त होता है वह रस है। * जो सूंघा जाता है वह गन्ध है। * जो देखा जाता है वह वर्ण है। * जीव और पुद्गलों को गमन में सहकारी होना गतिहेतुत्व है। * जीव और पुद्गलों को ठहरने में सहकारी होना स्थितिहेतुत्व है। समस्त द्रव्यों को अवकाश देना अवगाहनहेतुत्व है। आलापपद्धति भूतार्थप्रकाशकं ज्ञानम्। अथवा सद्भावविनिश्चयोपलम्भकं ज्ञानम्। ध. पु. | पृ. 142, 143 बृ. द्र. सं. गाथा 43, गो. जी. गाथा 482 पंचास्ति गा. 163 टीका, प्रवचनसार गा. 59 टीका, पद्म. पंचवि. 8/6 त. वृ. 9/44 ध. पु. 13 पृ. 390, ध. पु. 6 पृ. 78 सर्वार्थसिद्धि 2/20 61 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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