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________________ CE कि जो गण और पर्याय से सहित होता है वह द्रव्य कहलाता है। प्रत्येक द्रव्य गण और पर्यायों का समूह है।' जैसे- जीव में ज्ञान और दर्शन गुण हैं और मतिज्ञानादि एवं नाट पर्यायें होती हैं। यह द्रव्य का लक्षण पूर्व लक्षण से भिन्न नहीं है। सिर्फ शब्द भेद है, अर्थभेद नहीं है क्योंकि पर्याय से उत्पाद और व्यय की तथा गुण से ध्रौव्य अर्थ की प्रतीति हो जाती है। इसी प्रसंग में आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी लिखते हैं कि दव्वं सल्लक्खणियं उप्पादव्वयधुवत्तसंजुत्तं। गुण पज्जयासयं वा जं तं भण्णंति सव्वण्ह॥ अर्थात जो सत्ता है लक्षण जिसका ऐसा है, उस वस्तु को सर्वज्ञ वीतराग देव द्रव्य कहते हैं। अथवा उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यसंयुक्त द्रव्य का लक्षण कहते हैं। अथवा गुण पर्याय का जो आधार है उसको द्रव्य का लक्षण कहते हैं। यहाँ गण का स्वरूप स्पष्ट करते हुए आचार्य लिखते हैं कि- "दव्याश्रया निर्गुणा गुणाः।” अर्थात् जो द्रव्य के आश्रय से रहते हैं और जो अन्य गुणों में नहीं पाये जाते हैं वे गुण कहलाते हैं। जैसे- जीव के ज्ञानादि गुण, पुद्गल के स्पर्शादि गुण। ये स्पर्शादि गुण सिर्फ पुद्गल द्रव्य के आश्रय से ही रहते हैं इनमें ज्ञानादि गुण नहीं पाये जा सकते / इसमें यह विशेषता है कि द्रव्य की अनेक पर्याय पलटते रहने पर भी जो द्रव्य से कभी पृथक् न हों, निरन्तर द्रव्य के साथ रहें उसे गुण कहते हैं। गुण दो प्रकार के होते हैं- सामान्य गण और विशेष गुण। सामान्य गुण- जो गुण सभी द्रव्यों में समान रूप से पाये जाते हैं उन्हें सामान्य गण कहते हैं। जैसे- अस्तित्व, वस्तुत्व आदि। विशेष गुण- जो गुण एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य से पृथक् करते हैं वे विशेष गुण कहलाते हैं। जैसे- ज्ञान, दर्शन, स्पर्श, गति आदि। स.सि. 512 पं.का.गा.10, प्र.सा. 2/3-4 त.सू. 5/41 न्या. टीका सूत्र 78 50 Jain Education Intomational For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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