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________________ आचार्य देवसेन स्वामी ने अपने पूर्वाचार्यों का ही अनुकरण किया है। उसमें आचार्य स्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र के पंचम अध्याय में द्रव्य के दो लक्षणों को वर्णित किया है। जिसको पूर्ण रूप से समर्थन दिया है। जिनमें से प्रथम लक्षण है "सद्रव्य लक्षणम्" अर्थात सत् द्रव्य का लक्षण है। सत् का स्वरूप वर्णित करते हुए आचार्य लिखते हैं किउत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्तं सत्।' अर्थात् जो उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त होता है वह द्रव्य कहलाता है। यहां आचार्य का आशय यह है कि जो भी द्रव्य की संज्ञा को प्राप्त है वह इन तीनों से युक्त अवश्य ही होता है। ये तीनों एक-दूसरे के अविनाभावी हैं। इन तीनों अवस्थाओं का स्वरूप इस प्रकार हैउत्पाद - द्रव्य की नवीन पर्याय का उत्पन्न होना उत्पाद कहलाता है। जैसे- नरक से मनुष्य पर्याय में उत्पन्न होना, मनुष्य पर्याय का उत्पाद है। व्यय - द्रव्य की पूर्व पर्याय का विनाश हो जाना व्यय कहलाता है। जैसे- नरक से मनुष्य पर्याय में उत्पन्न होना, नरक पर्याय का व्यय है। ध्रौव्य - जो द्रव्य की दोनों पर्यायों में सर्वदा रहता है वह ध्रौव्य है। जैसे- नरक से मनुष्य पर्याय में उत्पन्न हो, इन दोनों अवस्थाओं में जीव नित्य विद्यमान रहता है यह ध्रौव्य है। यहां नरक पर्याय का व्यय हो रहा है, मनुष्य पर्याय का उत्पाद हो रहा है फिर भी दोनों अवस्थाओं में वही जीव विद्यमान रहता है। जो-जो भी द्रव्य हैं वे इन तीन गुणों सहित अवश्य ही होंगे। आचार्य समन्तभद्र स्वामी लिखते हैं कि- घट, मौलि और सुवर्ण को चाहने वालों को इन तीनों नाश, उत्पाद और स्थिति में शोक, प्रमोद और माध्यस्थ भाव को लोग निमित्त सहित प्राप्त करते हैं। जिसके दुग्ध लेने का व्रत है वह दही नहीं लेता, जिसके दही लेने का व्रत होता है वह दुग्ध नहीं लेता। जिसका गोरस न लेने का व्रत है वह दोनों नहीं लेता। इससे मालूम होता है कि वस्तुतत्त्व त्रयात्मक है।' द्वितीय लक्षण को लक्षित करते हुए आचार्य लिखते हैं कि- "गुणपर्ययवद् द्रव्यम्' अर्थात् गुण और पर्याय वाला जो है वह द्रव्य है। यहां आचार्य उमास्वामी महाराज का आशय त.सू. 5/29 वही 5/30 आ. मी. 59-60 त. सू. 5/38 49 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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