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________________ पास हो जाते हैं जिनका वर्गीकरण आचार्य नेमिचन्द्रस्वामी ने गोम्मटसार जीवकाण्ड में किया है। अजीव तत्त्व - जीव के विपरीत स्वभाव वाला अजीव तत्त्व कहलाता है। इसका वर्णन भेदों सहित आगामी तृतीय परिच्छेद में द्रव्य के वर्णन में किया जाएगा। आस्रव तत्त्व का स्वरूप बताते हुए आचार्य देवसेन स्वामी लिखते हैं जिस प्रकार किसी नदी का प्रवाह किसी पर्वत से निकलता है और वह किसी . सरोवर में निरन्तर प्रवेश करता रहता है, उसी प्रकार जीव के शुभ और अशुभ परिणामों को पाकर आगामी काल के लिये कर्मों का आस्रव होता रहता है कर्मों का आस्रव मन, वचन और काय इन तीनों योगों से होता है। इसी तथ्य को पुष्ट करते हुए तत्त्वार्थ सूत्र में आचार्य उमास्वामी लिखते हैं कि-'कायवाङ्मनः कर्म योगः' 'स आम्रवः'। अशुभ योगों से अशुभ कर्मों का आस्रव होता है और शुभ योगों से शुभ कर्मों का आस्रव होता आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने सर्वार्थसिद्धि में लिखा है-'शुभाशुभकर्मागमद्वार रूपं आस्रवः" अर्थात् शुभ और अशुभ कर्मों के आने के द्वार रूप आस्रव है। आचार्य नेमिचन्द्र स्वामी के अनुसार जिन भावों से आत्मा में कर्म आते हैं वह भावानव कहलाता है और कर्मरूप परिणत होकर आत्मा में कर्मों का आना 'द्रव्यासव' कहा जाता है। इस प्रकार आस्रव को दो भेद रूप प्रदर्शित किया है। यह आस्रव मुख्य रूप से राग-द्वेष-मोह आदि के कारण से होता है। आचार्य ने कर्मप्रकृतियों को आस्रव के भेद से पुण्य प्रकृतियाँ और पाप प्रकृतियाँ रूप दो भेद किये हैं। जिनमें 100 प्रकृतियाँ पाप रूप और 68 प्रकृतियाँ पुण्य रूप हैं। भावानव के 5 मिथ्यात्व, 15 योग, 12 अविरति और 25 कषाय के भेद से कुल सत्तावन भेद होते हैं। भावसंग्रह 319-320 तत्त्वार्थसूत्र 6/1-3 सर्वार्थसिद्धि 1/4 आसवदि जेण कम्मं परिणामणप्पणो स विण्णेओ। भावासओ जिणुत्तो कम्मासवणं परो होदि।29॥ 40 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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