________________ अक्षर हों। सिद्धचक्र बनाकर 'अर्हद्भ्यो नमः' लिखना चाहिये। इस सभी को तीन माया रेखाओं से वेष्ठित करना चाहिये। फिर चारों ओर धरा मंडल बना देना चाहिये। इस प्रकार से संक्षिप्त में सिद्धचक्र का विधान कहा। जो पुरुष गंध, दीप, धूप और फूलों से इस यंत्र की पूजा करता है तथा इसकी जाप करता है, वह पुरुष अपने संचित पाप कर्मो का क्षय करता है। इसके सिवाय सिद्धचक्र का वृहत उद्धार महाउद्धार विधान भी है। जो अन्य शास्त्रों में वर्णित है, परन्तु उसको इस काल में नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसकी सामग्री प्राप्त नहीं होती। शांति चक्र यंत्र गुरु के उपदेश से शांति चक्र यंत्र का उद्धार कर उसकी पूजा करनी चाहिए। जो इस प्रकार है :- बीच में कर्णिका रखकर वलय देकर उसके बाहर आठ दल का कमल बनावे, फिर वलय देकर सोलह दल का कमल बनाये, फिर वलय देकर उसके बाहर चौबीस दल का कमल बनावे और वलय देकर बत्तीस दल का कमल बनावे। उसके मध्य में कर्णिका पर मंत्र सहित अरंहत परमेष्ठी लिखे। चारों दिशाओं में अन्य परमेष्ठियों को लिखे। विदिशाओं में सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप लिखे। बाहर आठ दलों में जया आदि आठ देवियों को लिखे। सोलह कमलों में मंत्र सहित सोलह विद्या देवियों को लिखे, चौबीस कमलों में चौबीस यक्षियों को लिखे। बत्तीस कमलों में बत्तीस इन्द्रों को लिखे। इन सबको अपने-अपने मंत्र सहित लिखना चाहिये। इस प्रकार सात रेखाओं से वेष्ठित करना चाहिये तथा सातों ही रेखाएं वज्र सहित होनी चाहिए। चारों ओर चार द्वार करना चाहिये। बाहर प्रत्येक दिशा में छह-छह यक्षों का निवेश करना चाहिये। इस प्रकार से शान्ति चक्र यंत्र उद्धार करना चाहिए। इस प्रकार से यंत्रोद्धार का संक्षिप्त कथन किया गया। शेष विस्तार गुरुओं से जानना चाहिये। नियमपूर्वक सिद्धचक्र यंत्रों पर अष्ट द्रव्य पूजा करने के पूर्व अत्यन्त शुद्ध सुगंधित द्रव्य से सिद्धचक्र लिखना चाहिये। जो पुरुष प्रतिदिन सिद्धचक्र यंत्रों की पूजा करता है, वह पुरुष अनेक पूर्वजन्मों से बांधे गये समस्त पापकर्मों को नष्ट कर देता है तथा प्रतिदिन होने वाले पापकर्मों को भी नष्ट करता हुआ अत्यधिक पुण्यकर्मों का संचय 358 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org