________________ करता है। इसके जाप करने या पठन करने मात्र से लोक में अनेक प्रकार की विद्यायें इच्छानुकूल हो जाती हैं तथा अनेक प्रकार के मंत्र सिद्ध हो जाते हैं। सिद्धचक्र यंत्रों के प्रभाव से तथा सिद्ध मंत्र एवं सिद्ध विद्याओं के प्रभाव से घरों में रहने वाले भूत, पिशाच आदि सभी नष्ट हो जाते हैं और उनका भय दूर हो जाता है, विष दूर हो जाते हैं। सिद्ध किये गये यंत्र मंत्रों का ध्यान करने से वशीकरण, आकर्षण, स्तम्भन, स्नेह, मानसिक शान्ति तथा अनेक प्रकार के रोग और बीमारियों को दूर कर लिया जाता है। शत्रु उसे मारने में समर्थ नहीं हो पाते। शत्रु भी मैत्रीभाव को प्राप्त हो जाते हैं। संसार में वह राजा-महाराजाओं द्वारा भी पूजनीय होता है। अधिक क्या कहना सिद्धचक्र यंत्रों के प्रताप से मोक्ष सुख तक प्राप्त होते हैं फिर उससे सांसारिक सुख क्यों प्राप्त नहीं किये जा सकते? अर्थात् अवश्य ही प्राप्त किये जा सकते हैं। पंच परमेष्ठी चक्र जो पुरुष सिद्धचक्र यंत्रों को सिद्ध करने में असमर्थ हो, वह पुरुष संसार में मनवांछित फल प्राप्ति हेतु परम पंच परमेष्ठी चक्र की पूजा अर्चना करे। उसकी विधि बताते हुए आचार्य देवसेन स्वामी कहते हैं कि- परमेष्ठी चक्र यन्त्र पूजा हेतु यन्त्र को चन्द्रकला बिन्दु से युक्त करें, जिसके ऊपरी शिर एवं रेफ वाले भाग को खाली रखें। ऊपर मात्रायें तथा बीजाक्षर लिखें। बायीं दिशा में नकार, मकार तथा दक्षिण की ओर विसर्ग बिन्दु सहित बाहरी भाग में त्रिगुणी अष्टकमल बनावें। कमलपत्र के बीच में ऊँकार बनाकर शेष पर अर्हत् पर लिखें और मध्य में देवपूजा चक्र बनावें। अथवा अनेक रेखायें खींचकर एक 49 कोठे का यन्त्र बनावें तथा सभी में अति पवित्र अक्षरों को क्रमानुसार लिखकर मध्यभाग में पंच परमेष्ठियों का नाम लिखें और मंत्राक्षरों को लिखें। ऐसे पंच परमेष्ठी वाचक यंत्रोद्धार पूजन से पापकर्मों का आवरण समूह नष्ट होकर इच्छित फल की प्राप्ति होती है। 359 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org