SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कमलगट्टा श्रीफल आदि में किसी देवता की स्थापना करके पूजन करना असद्भाव स्थापना पूजा है। सद्भाव स्थापना तो स्पष्ट ही है, किन्तु असद्भाव स्थापना के सन्दर्भ में थोड़ा और समझ लेना आवश्यक है। प्रायः जितने भी प्राचीन पूजन-विधान के सन्दर्भ ग्रन्थ उपलब्ध हैं, उनमें सद्भाव स्थापना पर ही जोर दिया गया है, किन्तु आचार्य सोमदेव ने असद्भाव स्थापना पूजा का भी विशेष वर्णन किया है। यथा - पवित्र पुष्प, पल्लव, फलक, भूर्जपत्र, सिकता, शिलातल, क्षिति, व्योम या हृदय आदि के मध्य भाग में अर्हन्त को, उसके दक्षिण भाग में गणधर को, पश्चिम भाग में जिनवाणी को, उत्तर भाग में साधु को और पूर्वभाग में रत्नत्रय रूप धर्म को समय अर्थात् शास्त्र के ज्ञाता लोग हमेशा स्थापित करें। वर्तमान में यह असद्भाव स्थापना की पूजा पद्धति समाप्त प्राय है। विद्वज्जनों को प्रचलित सद्भाव स्थापना पूजन ही करनी चाहिए। आचार्य वसुनन्दि महाराज असद्भाव स्थापना का स्पष्ट निषेध करते हुए कहते हैं कि - हुण्डावसर्पिणी काल में दूसरी असद्भाव स्थापना पूजा नहीं करनी चाहिये, क्योंकि कुलिंग मतियों से मोहित इस लोक में सन्देह हो सकता है।' आचार्य वसुनन्दि महाराज ने कुलिंगियों से मोहित इस लोक में काल दोष के कारण असद्भाव स्थापना का निषेध किया है। आकार रहित अक्षत, कमलगट्टा आदि में देवता की स्थापना नहीं करनी चाहिये। अगर अरिहन्त मतानुयायी भी जिस किसी वस्तु में भी अपने इष्ट देवता की स्थापना कर उसकी पूजा करने लगेंगे, तो फिर साधारण लोगों से विवेकी लोगों में कोई भेद ही नहीं रह जायेगा और सर्वसाधारण जनमानस में अनेक प्रकार के सन्देह भी उत्पन्न होंगे। चूंकि आचार्य वसुनन्दि के पूर्ववर्ती आचार्य सोमदेव ने. असद्भाव स्थापना की पुष्टि की है, किन्तु आचार्य वसुनन्दि के तर्क ध्यान में रखकर असद्भाव स्थापना का निषेध स्वीकार करने योग्य है। यह बात भी विचार करने योग्य है यशस्तिलक चम्पू आश्वास 8/383-384 वसु. श्रा. गा. 385 2 352 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy