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________________ (iv) चारित्र पण्डित - जो सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात चारित्र में से किसी एक चारित्र का पालक है, वह चारित्र पण्डित है। इन सबका जो मरण होता है, वह पण्डित मरण है। अवसन्नमरण - मोक्षमार्ग में प्रवर्तन करने वाले संयमियों के संघ से जो विहीन हो गया है. निकाल दिया गया है. वे अवसन्न हैं. उनका मरण अवसन्न मरण कहलाता है। इसमें पार्श्वस्थ, स्वच्छन्द, कुशील और संशक्त भी ग्रहण हो जाते बालपण्डित मरण - सम्यग्दृष्टि संयतासंयत श्रावक के मरण को बालपण्डित मरण कहते हैं। 9. सशल्य मरण - इसके दो भेद हैं - द्रव्य शल्य - मिथ्यादर्शन, माया, निदान इन तीन शल्यों का कारण जो कर्म है, उसको द्रव्य शल्य कहते हैं। पाँचों स्थावरों और असंज्ञी त्रसों का द्रव्य शल्य मरण होता है। माया, मिथ्या और निदान ये भाव, भाव शल्य हैं। इनमें भावशल्य से सहित मरण होता है, वह सशल्य मरण है। 10. पलाय मरण - जो विनय, वैयावृत्य आदि में आदर भाव नहीं रखता, प्रशस्त योग धारण में आलसी, प्रमादी है, व्रत, समिति और गुप्तियों में अपनी शक्ति को छिपाता है, धर्म के चिन्तन में निद्रालु, उपयोग न लगने से ध्यान, नमस्कार आदि से दूर भागता है, उसका मरण पलाय मरण है। 11. वशात मरण - आर्त्त और रौद्र ध्यान मरण को वशात मरण कहते हैं। इसके चार भेद हैं - इन्द्रिय वशात मरण, वेदना वशात मरण, कषाय वशात मरण और नोकषाय वशात मरण। 12. विप्राण मरण - जब व्रत, क्रिया, चारित्र में उपसर्ग आवे एवं सहा भी न जाय और भ्रष्ट होने का भय हो तब असमर्थ होकर अन्नपान का त्याग करके मरण करता है, वह विप्राण मरण है। 315 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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