________________ 13. गृद्धपृष्ठ मरण - शस्त्र ग्रहण से होने वाले मरण को गद्धपृष्ठ मरण कहते हैं। ये दो मरण ऐसे हैं जिनका निषेध भी नहीं है और अनज्ञा भी नहीं है। 14. भक्तप्रत्याख्यान मरण - अनुक्रम से आहारपानादि का यथाविधि त्याग करके मरण करता है वह भक्तप्रत्याख्यान मरण है। 15. प्रायोपगमन मरण - जो प्रायोपगमन संन्यास धारण करके अन्य किसी से वैयावृत्य नहीं कराता और न ही स्वयं करता है, वह काष्ठ-पाषाणमूर्ति अथवा मृतक शरीर के जैसे प्रतिमायोग धारण करके मरण करता है, वह प्रायोपगमन मरण कहलाता है। 16. इंगिनी मरण - जो समाधि धारण करके अन्य किसी से वैयावृत्य नहीं कराता है, वह इंगिनी मरण है। 17. केवली मरण - अयोग केवली के निर्वाण को केवली मरण कहते हैं। इन 17 मरण के स्वरूप वर्णन के पश्चात् इनमें से मुख्यतया जो पाँच भेद हैं, उनको यहाँ विशेष रूप से वर्णित करते हुए कहते हैं पंडिदपंडिदमरणं पंडिदयं बालपडिदं चेव। बालमरणं चउत्थं पंचमयं बालबालं च॥ अर्थात् पण्डितपण्डितमरण, पण्डितमरण, बालपण्डितमरण, बालमरण और बालबालमरण ये मरण के पाँच भेद कहे हैं। इनमें से प्रथम तीन मरण ही प्रशंसा के योग्य हैं। प्रथम पण्डितपण्डितमरण जिससे केवली भगवान् निर्वाण की प्राप्ति करते हैं। उत्तम चारित्रधारी मुनियों के पण्डितमरण कहा गया है। संयमासंयम गुणस्थानवी जीवों के तृतीय बालपण्डितमरण होता है। चतुर्थ बालमरण सम्यग्दृष्टि जीवों के और बालबालमरण मिथ्यादृष्टि के होता है। भगवती आराधना गा. 26 316 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org