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________________ आचार्य कहते हैं - मिथ्या उपदेश करना, रहोभ्याख्यान, कुटलेख क्रिया, साकारमंत्रभेद और दूसरे की सम्पत्ति को हड़प लेना। इन पाँचों से सदैव बचना चाहिये। 3. अचौर्याणुव्रत - किसी की बिना दी, रखी हुई, पड़ी हुई, भूली हुई वस्तु को बिना दिये हुए ग्रहण नहीं करना अचौर्याणुव्रत कहलाता है। इसी लक्षण को और विशेष बताते हुए कहते हैं कि जो बहुमूल्य वस्तु को अल्पमूल्य में नहीं लेता, दूसरे की भूली हुई वस्तु को भी नहीं उठाता, थोड़े लाभ से ही सन्तुष्ट रहता है तथा कपट, लोभ, माया से पराये द्रव्य का हरण नहीं करता, वह शुद्धमति, दृढनिश्चयी श्रावक अचौर्याणुव्रती है।' आचार्य उमास्वामी महाराज चोरी का स्वरूप लिखते हैं - 'अदत्तादानं स्तेयम्" दूसरे के द्वारा जो वस्तु दी गई हो, वह दत्त है, जो दत्त नहीं वह अदत्त है। आदान अर्थात् हस्तादिक के द्वारा ग्रहण करना। अदत्त का ग्रहण करना चोरी है। आचार्य पूज्यपाद स्वामी का कथन है कि - बिना दी गई वस्तु चाहे छोटी हो या बड़ी, मूल्यवान् हो अथवा मुफ्त हो, उसको अपना बना लेना चोरी है। ग्रहण करना तो दूर, ग्रहण करने रूप भावों का उत्पन्न होना ही चोरी है। ऐसे चोरी करने से संक्लेश भाव भी उत्पन्न होते हैं।' आचार्य समन्तभद्र स्वामी कहते हैं कि - निहितं वा पतितं वा सुविस्मृतं वा परस्वमविसृष्टम्। न हरन्ति यन्न च दत्ते तदकृशचौर्यादुपारमणम्॥' अर्थात् रखा हुआ, गिरा हुआ, भूला हुआ, ऐसे परधन अथवा पर पदार्थ को जो न स्वयं लेता है, न दूसरों को देता है, उसे स्थूल चोरी का त्यागी कहा है। इसी सम्बन्ध में आचार्य शिवकोटि, आचार्य अमृतचन्द्रस्वामी, आचार्य वसुनन्दि, आचार्य सोमदेव, पं. आशाधर जी एवं पं. दौलतराम जी ने भी अपना मत प्रस्तुत किया है। 'जलमृतिका बिन और नाहिं कछु गहै अदत्ता' जल और मिट्टी के बिना और किसी भी वस्तु को बिना दिये ग्रहण नहीं करना अचौर्याणुव्रत है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा गा. 335-336 त. सू. 7/15 स. सि. 7/15 र. श्रा. 57 296 Jain Education International For Personal & Private Use Only www ainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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