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________________ अन्नपान निरोध। इन पाँचों अतिचारों से रहित होकर ही अहिंसाणुव्रत का पालन अच्छी प्रकार से हो सकता है। 2. सत्याणुव्रत - जैसा देखा है, जैसा जाना है उसको वैसा ही कहना सत्याणुव्रत कहलाता है। इसमें स्थूल झूठ का तो सर्वथा त्याग होता है परन्तु सूक्ष्म झूठ जो परोपकार के लिये हो, बोल सकता है वह सत्याणुव्रत है। इसी परिभाषा को परिपुष्ट करते हुए आचार्य समन्तभद्र कहते हैं स्थूलमलीकं न वदन्ति न परान् वादयति सत्यमपि विपदे। यत्तद्वदन्ति सन्तः स्थूलमृषावाद विरमणम्॥ जो लोकविरुद्ध, राज्यविरुद्ध और धर्मविघातक झूठ न तो स्वयं बोलता है और न दूसरों से बुलवाता है तथा दूसरों की विपत्तियों के लिये कारणभूत सत्य को भी न स्वयं बोलता है और न दूसरों से बुलवाता है, उसे बुधजन स्थूल मृषावाद से विरमण अर्थात् विरक्त कहते हैं। आचार्य अमृतचन्द्रस्वामी ने प्रमाद के योग से असत्य का कथन नहीं करना सत्याणुव्रत कहते हुए असत्य के चार भेद कहे हैं (i) विद्यमान वस्तु का निषेध करना। (ii) अविद्यमान वस्तु का सद्भाव बताना। (iii) विपरीत कथन करना। (iv) गर्हित, सावद्य, अप्रिय वचन बोलना। पं. दौलतराम जी ने भी अतिसंक्षेप में इसका वर्णन किया है - परवधकार कठोर निन्द्य नहिं वयन उच्चारे'। इन चारों को टालते हुए सत्याणुव्रत का पालन निर्बाधरूप से किया जा सकता है। सत्यव्रत की महिमा का गान सभी आचार्यों ने किया है और असत्य भाषण को सभी. ने निन्दित कहा है। सत्याणुव्रत के पालन करने में धनदेव वणिक प्रसिद्ध हुए हैं। इस व्रत के पालन में क्रोध, लोभ, भय और हास्य बाधा उत्पन्न करते हैं। इसलिये इनके वशीभूत होकर हमें अपना विवेक नहीं छोड़ना चाहिए। इस व्रत के पाँच अतिचारों को वर्णित करते हुए र. श्रा. 55, पु. सि. 91, वसु. श्रा. गा. 210 295 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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