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________________ जीव प्राण द्वीन्द्रिय | स्पर्शन, रसना इन्द्रिय, कायबल, वचनबल, आयु, श्वासोच्छ्वास = 6 त्रीन्द्रिय | स्पर्शन, रसना घ्राण, काय, वचनबल, आयु, श्वासोच्छ्वास = 7 चतुरिन्द्रिय | स्पर्शन, रसना घ्राण, चक्षु, काय, वचनबल, आयु, श्वासोच्छ्वास - 8 असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय | पाँचों इन्द्रियाँ, काय, वचनबल, आयु, श्वासोच्छ्वास = 9 संजी पञ्चेन्द्रिय पाँचों इन्द्रियाँ, तीनों बल, आयु, श्वासोच्छवास = 10 जिस विषय को आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र' में सूत्र रूप में लिखा है-उसी विषय को आचार्य देवसेन स्वामी ने भावसंग्रह में गाथारूप में व्यक्त किया है सायारो अणयारो उवओगो दुविह भेय संजुत्तो। सायारो अट्ठविहो चउप्पयारो अणायारो।289।। उपयोग जो आत्मा (जीव) का लक्षण है वह साकार (ज्ञान) और अनाकार (दर्शन) दो भेदों से सहित है और वे साकार अर्थात् ज्ञानोपयोग आठ प्रकार एवं अनाकार अर्थात् दर्शनोपयोग चार प्रकार के हैं। उपयोग जो जीव का लक्षण है उसका लक्षण आचार्यों ने इस प्रकार लिखा है - आत्मा के चैतन्य अनुविधायी (कभी जुदा न होने वाला) परिणामों को उपयोग कहते हैं अथवा आत्मा के ज्ञान-दर्शन भावों को उपयोग कहते हैं। उपयोग के दो भेद होते हैं 1. ज्ञानोपयोग 2. दर्शनोपयोग ज्ञानोपयोग को साकार अर्थात् सविकल्पक कहा गया है और दर्शनोपयोग को निराकार अर्थात् निर्विकल्पक कहा गया है, क्योंकि दर्शनोपयोग में वस्तु का सामान्य अवलोकनमात्र (आभास) ही होता है इसलिये कोई विकल्प उत्पन्न ही नहीं होता। ज्ञानोपयोग के भेदों का उल्लेख करते हुए आचार्य देवसेन स्वामी लिखते हैं मइ सुइ उवहि विहंगा अण्णाण जुदाणि तिण्ण णाणाणि। सम्मण्णाणाणि पुणो केवल दट्ठाणि पंचेव।। उपयोगो लक्षणम्। स द्विविधोऽष्टचतुर्भेदः, 2/8-9 भावसंग्रह गाथा 290 24 Jain Education International For Personal & Private Use Only www ainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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