________________ ॐ ह्रीं स्वहँ नमो नमोऽर्हतानां ह्रीं नमः अचिन्त्य फल की प्राप्ति ॐ ह्रीं अर्हत् सिद्ध सयोग केवली स्वाहा ज्ञान साम्राज्य और मोक्ष की प्राप्ति 13. ॐ जोग्गे मग्गे तच्चे भूदे भव्वे भविस्से अक्खे | अचिन्त्य फल की प्राप्ति पक्खे जिण पारिस्से स्वाहा 14. . ॐ नमोऽर्हते केवलिने परमयोगिनेऽनन्तशुद्धि शान्ति की प्राप्ति और परिणाम विस्फुर-दुरुशुक्ल ध्यानाग्निर्दग्ध- | दु:खों का नाश कर्म-बीजाय प्राप्तानंत चतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मंगलाय वरदाय अष्टादशदोष रहिताय स्वाहा | 15. | ॐ ह्रीं अर्हन्मुख कमलवासिनी पापात्मक्षयंकरि पाप नाशक श्रुतज्ञान ज्वाला सहस्र प्रज्वलिते सरस्वति मत्पापं हन हन दह दह क्षां क्षीं क्षं झें क्षौं क्षः क्षीरवरधवले अमृतसंभवे वं वं हूं हूं स्वाहा 16. चत्तारि मंगलं। अरिहंत मंगल। सिद्ध मंगल। साहू | मोक्ष प्राप्ति मंगल। केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा। अरिहंत लोगुत्तमा। सिद्ध लोगुत्तमा। साहू लोगुत्तमा। केवलि पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि। अरिहंते सरणं| पव्वज्जामि। सिद्धे सरणं पव्वज्जामि। साहूं सरणं पव्वज्जामि। केवलि पण्णत्तं धम्म सरणं पव्वज्जामि। उपर्युक्त मंत्रों का मुमुक्षु साधक निरन्तर अवलम्बन लेकर ध्यान करते हुए अपना कल्याण करते हैं। इन मंत्र पदों के अभ्यास से विशुद्धि बढ़ती है, चित्त की एकाग्रता होने 273 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org