SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यहाँ आचार्य देवसेन स्वामी का आशय यह है कि इस गाथा में जो 'आदि' पद है. गाथा के आर्या छन्द के प्रथम चरण की 12 मात्राओं की पूर्ति के लिये ही है, इसका दसरा कोई प्रयोजन नहीं है, क्योंकि छन्द की पूर्णता के लिये यदि कवि लोग आदि जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं तो इसमें कोई दोष नहीं है। और इनकी भगवती आराधनाकार ने आराधना पाँच प्रकार से निरूपित की हैं मरण समय निरतिचार परिणति होना आराधना है, ऐसा कहा है उज्जोवणमुज्जवणं णिव्वहणं साहणं च णिच्छरणं। दंसणणाणचरित्तं तवाणमाराहणा भणिया। अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकुचारित्र और सम्यक् तप के उद्योतन, उद्यवन, निर्वहण, साधन, निस्तरण को जिनेन्द्रदेव ने आराधना कहा है। उद्योतन आदि के स्वरूप को प्ररूपित किया जाता है - उद्योतन - सम्यग्दर्शनादि चारों के निर्मलीकरण को अर्थात् उसमें उत्पन्न चल-मल आदि दोषों को शान्त करना उद्योतन है। उद्यवन - सम्यग्दर्शनादि का बार-बार दर्शनादि रूप परिणमन करना उद्यवन है। निर्वहन - परीषह, उपसर्ग आदि बाह्य बाधा उत्पन्न होने पर भी सम्यग्दर्शनादि को यथावत् बनाये रखना निर्वहण कहलाता है अर्थात् धर्म से विचलित नहीं होना। साधन - सांसारिक वस्तुओं के प्रति जब मन भटकने लगे तब पुनः उन्हें अपकारी मानते हुए आत्मध्यान में लीन होना साधन है। निस्तरण - आगामी भवों में अथवा उसी भव में मरणपर्यन्त सम्यग्दर्शनादि गुणों को धारण करना निस्तरण है। उपरोक्त हेतुओं से सम्यग्दर्शनादि को मजबूत आधार प्राप्त होता है। अतः भगवती आराधना में आराधना के अन्तर्गत इन हेतुओं को समाविष्ट किया गया है। कोई यहाँ प्रश्न कर सकता है कि गाथा में कहीं भी सम्यक पद का प्रयोग नहीं किया गया है फिर इनमें सम्यक् पद की योजना किस कारण से ही है? उसका समाधान करते हुए कहते हैं कि इनके पूर्व में सम्यक् पद लगाना सार्थक है, क्योंकि मिथ्यापद ग्रहण करने 205 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy